अधरों पे मेरे इबादत बस एक ही सजी हैं
खुदा तू मेरा, मौसक़ि भी तू ही हैं
कलमा गुनगुना रहा हूँ बस तेरे ही नाम का
आशिक़ी जूनून बन गयी जैसे चाह की तेरी
झुक गया सजदे में तेरे आके मैं
कुछ और नहीं बंदगी हैं ये मेरे प्यार की
पढ़ रही जो आयतें बस तेरे ही नाम की
एक तू ही मेरा मुकम्मल जहाँ मेरे वास्ते
तुझसे शुरू तुझ पे ही ख़त्म
रहनुमाई मेरे इश्क़ ए नादाँ की
मेरे इश्क़ ए नादाँ की
खुदा तू मेरा, मौसक़ि भी तू ही हैं
कलमा गुनगुना रहा हूँ बस तेरे ही नाम का
आशिक़ी जूनून बन गयी जैसे चाह की तेरी
झुक गया सजदे में तेरे आके मैं
कुछ और नहीं बंदगी हैं ये मेरे प्यार की
पढ़ रही जो आयतें बस तेरे ही नाम की
एक तू ही मेरा मुकम्मल जहाँ मेरे वास्ते
तुझसे शुरू तुझ पे ही ख़त्म
रहनुमाई मेरे इश्क़ ए नादाँ की
मेरे इश्क़ ए नादाँ की
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमालती जी
Deleteशुक्रिया
सादर
मनोज
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteमालती जी
Deleteशुक्रिया
सादर
मनोज
दिलबाग भाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद्
सादर
मनोज