बिखरने दो जज़्बात
हँसने दो क़ायनात
इस पल ही सिर्फ़ जिंदगानी हैं
बाकी सब आँसुओं का खारा पानी हैं
दिल का आसमां भी
थोड़ा इतरायेगा थोड़ा मचलायेगा
पर जब खुल के बरसने लगेंगे जज़्बात
जैसे धुप सुहानी नयी रंगत लिए
छा जायेगी चहरे पर मधुर मुस्कान
उस पल को ही बस छूना हैं
जज्बातों की इस महफ़िल में
अपना खुशनुमा पल तलाशना हैं
भूला सारी क़ायनात को
बस एक इस पल को ही जीना हैं
बस एक इस पल को ही जीना हैं
हँसने दो क़ायनात
इस पल ही सिर्फ़ जिंदगानी हैं
बाकी सब आँसुओं का खारा पानी हैं
दिल का आसमां भी
थोड़ा इतरायेगा थोड़ा मचलायेगा
पर जब खुल के बरसने लगेंगे जज़्बात
जैसे धुप सुहानी नयी रंगत लिए
छा जायेगी चहरे पर मधुर मुस्कान
उस पल को ही बस छूना हैं
जज्बातों की इस महफ़िल में
अपना खुशनुमा पल तलाशना हैं
भूला सारी क़ायनात को
बस एक इस पल को ही जीना हैं
बस एक इस पल को ही जीना हैं
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-12-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2564 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद