तुझसे बहुत कुछ सीखा ए जिंदगी
पर ख़ुद से जीतने का हुनर ना सीख पाया
अल्फ़ाज़ जो मेरे दर्द मेरा समटे थे
ख़ामोशी उनकी कभी समझ ना पाया
लव तब भी कुछ कहने को तरथराते जाते थे
तन्हाईयों में जब हम अपने आप से मिला करते थे
ना मेरा कोई साया था ना ही कोई प्रतिबिंब था
उजाले से फिर भी डर लगा करता था
स्याह अमावास की रात सी हर सुबह होती थी
क्योंकि किसी के छोड़ चले जाने का जिक्र
इन सुर्ख लवों पे हर पल जो मेरे संग रहा करता था
हर पल जो मेरे संग रहा करता था
पर ख़ुद से जीतने का हुनर ना सीख पाया
अल्फ़ाज़ जो मेरे दर्द मेरा समटे थे
ख़ामोशी उनकी कभी समझ ना पाया
लव तब भी कुछ कहने को तरथराते जाते थे
तन्हाईयों में जब हम अपने आप से मिला करते थे
ना मेरा कोई साया था ना ही कोई प्रतिबिंब था
उजाले से फिर भी डर लगा करता था
स्याह अमावास की रात सी हर सुबह होती थी
क्योंकि किसी के छोड़ चले जाने का जिक्र
इन सुर्ख लवों पे हर पल जो मेरे संग रहा करता था
हर पल जो मेरे संग रहा करता था