Tuesday, December 27, 2016

हुनर

तुझसे बहुत कुछ सीखा ए जिंदगी

पर ख़ुद से जीतने का हुनर ना सीख पाया

अल्फ़ाज़ जो मेरे दर्द मेरा समटे थे

ख़ामोशी उनकी कभी समझ ना पाया

लव तब भी कुछ कहने को तरथराते जाते थे

तन्हाईयों में जब हम अपने आप से मिला करते थे

ना मेरा कोई साया था ना ही कोई प्रतिबिंब था

उजाले से फिर भी डर लगा करता था

स्याह अमावास की रात सी हर सुबह होती थी

क्योंकि किसी के छोड़ चले जाने का जिक्र

इन सुर्ख लवों पे हर पल जो मेरे संग रहा करता था

हर पल जो मेरे संग रहा करता था

Wednesday, December 21, 2016

इस पल

बिखरने दो जज़्बात

हँसने दो क़ायनात

इस पल ही सिर्फ़ जिंदगानी हैं

बाकी सब आँसुओं का खारा पानी हैं

दिल का आसमां भी

थोड़ा इतरायेगा थोड़ा मचलायेगा

पर जब खुल के बरसने लगेंगे जज़्बात

जैसे धुप सुहानी नयी रंगत लिए

छा जायेगी चहरे पर मधुर मुस्कान

उस पल को ही बस छूना हैं

जज्बातों की इस महफ़िल में

अपना खुशनुमा पल तलाशना हैं

भूला सारी क़ायनात को

बस एक इस पल को ही जीना हैं

बस एक इस पल को ही जीना हैं


Saturday, December 10, 2016

रैन बसेरा

आज फ़िर कुछ लिखने को मन हो रहा हैं

दिल अपना फ़िर से खोलने को मन हो रहा हैं 

क्यों हमसफ़र बन मिलते हैं लोग 

बिछड़ जाने को 

ग़म अपना उधार दे भूल जाने को

बंजर हो गयी मानों दिलों की जमीं

मृगतृष्णा की चाह में इसिलए

शायद लोग हद से गुजर जाते हैं

कुछ पल का रैन बसेरा कर

फ़िर दूर कही परवाज़ भर जाते हैं

ओर हौले से बंजारों की इस टोली को

अलविदा कह जाते हैं

अलविदा कह जाते हैं

आयतें

आयतें पढ़ूँ अब किसी ओर के लिए कैसे

कायनात थी वो जो इस जिंदगानी की

हारी थी दिल की बाजी उनके लिए

बदल वो रूह की तारुफ़ हमारी

ख़ुद बदल गए किसी ओर के लिए

लड़े थे जिस खुदा से इनके लिए

फ़रियाद करूँ अब उनसे कैसे

दिल ए कोई तिल्सिम का पिटारा नहीं

हर मर्ज का इलाज इसके पास भी नहीं

अब  तो बस यादों के मक़बरे पे लिखी

आयतों का ही साथ हैं

नजरें इनयातें तो सुपुर्दे ख़ाक हैं

नजरें इनयातें तो सुपुर्दे ख़ाक हैं