Tuesday, November 1, 2016

काँची

ए जिंदगी बिन धड़कन तूने जीना सीख लिया

दर्द को ही तूने धड़कन बना लिया

रूबरू ए जिंदगी तू जब काँची दिल से हुई

खो धड़कनों को जिन्दा लाश तू बन गयी

और उन बिलखती साँसों को

सजा ए ऐतबार

मौत से भी महरूम कर गयी

मौत से भी महरूम कर गयी

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