आरजू जिसकी कभी की नहीं
हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी
दिल को ए पता ही ना चला
परिंदों सी परवाज़ भरती जिंदगानी
अटखेलियाँ करती साजों से
कब इंद्रधनुषी रंगों में रंग गयी
दिल को ए पता ही ना चला
वो चाँद कब गलहार बन
जिंदगी का हमसफ़र बन गया
दिल को ए पता ही ना चला
हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी
दिल को ए पता ही ना चला
हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी
दिल को ए पता ही ना चला
परिंदों सी परवाज़ भरती जिंदगानी
अटखेलियाँ करती साजों से
कब इंद्रधनुषी रंगों में रंग गयी
दिल को ए पता ही ना चला
वो चाँद कब गलहार बन
जिंदगी का हमसफ़र बन गया
दिल को ए पता ही ना चला
हसरतें जिंदगी वो कब बन गयी
दिल को ए पता ही ना चला
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-10-2016) के चर्चा मंच "अर्जुन बिना धनुष तीर, राम नाम की शक्ति" {चर्चा अंक- 2504} पर भी होगी!
ReplyDeleteअहोई अष्टमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय शास्त्री जी
Deleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद
आभार
मनोज