क़दमों का क्या गुनाह
बिन पिये ए लड़खड़ाते हैं
दो बूँद शराब की
फिर से क़दमों में घुँघरू बंध जाते हैं
नचाती हैं जब दुनिया
बिन पिये ही ए बहक जाते हैं
ओर संभलने को फिर से
मयखाने चले आते हैं
आहिस्ता ही सही
भूल रंजो गम
सुरूर में इसकी
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
बिन पिये ए लड़खड़ाते हैं
दो बूँद शराब की
फिर से क़दमों में घुँघरू बंध जाते हैं
नचाती हैं जब दुनिया
बिन पिये ही ए बहक जाते हैं
ओर संभलने को फिर से
मयखाने चले आते हैं
आहिस्ता ही सही
भूल रंजो गम
सुरूर में इसकी
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
कदम फिर से थिरकने लग जाते हैं
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2473 में दी जाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबाग भाई
Deleteतहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज
आदरणीय शास्त्री जी
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत धन्यवाद्
सादर
मनोज
waah!
ReplyDeleteपारुल जी
Deleteहौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
आभार
मनोज
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteरश्मि जी
Deleteतहे दिल से शुक्रिया
आभार
मनोज