तारों भरी रात में
नींद आज फिर से दगा दे गयी
चाँद के इन्तजार में
हमें तन्हा अकेला छोड़ गयी
राह तकते तकते
मानों सदियाँ गुजर गयी
नयनों से जैसे निंदिया महरूम हो गयी
छिप गया ओझल होकर ना जाने वो कहा
निंदिया भी उसकी तलाश में
आँखों से भटक गयी
खुली पलकों में स्याह रात गुजर गयी
पर वो चाँद ना निकला
जिसके इन्तजार में रात ढल गयी
नींद आज फिर से दगा दे गयी
नींद आज फिर से दगा दे गयी
चाँद के इन्तजार में
हमें तन्हा अकेला छोड़ गयी
राह तकते तकते
मानों सदियाँ गुजर गयी
नयनों से जैसे निंदिया महरूम हो गयी
छिप गया ओझल होकर ना जाने वो कहा
निंदिया भी उसकी तलाश में
आँखों से भटक गयी
खुली पलकों में स्याह रात गुजर गयी
पर वो चाँद ना निकला
जिसके इन्तजार में रात ढल गयी
नींद आज फिर से दगा दे गयी
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