भोर की बारिस कान में कुछ गुनगुना गयी
हौले से नींद मेरी चुरा ले गयी
मिज़ाज कुछ ऐसा आशिक़ाना बना गयी
बाँहों में उनके दीदार करा गयी
सर्द ठंडी आहों में
तड़पते दिल को बेकरार बना गयी
बदनाम थे आशिक़ हम
बारिस उसपर क़यामत बरसा गयी
हर करवटों में
सपनों की एक नयी सौगात थमा गयी
भर रूह को बदरी के आगोश में
छम छमा छम मेघ बरसा गयी
भोर की बारिस चुपके से
निंदिया चुरा ले गयी
हौले से नींद मेरी चुरा ले गयी
मिज़ाज कुछ ऐसा आशिक़ाना बना गयी
बाँहों में उनके दीदार करा गयी
सर्द ठंडी आहों में
तड़पते दिल को बेकरार बना गयी
बदनाम थे आशिक़ हम
बारिस उसपर क़यामत बरसा गयी
हर करवटों में
सपनों की एक नयी सौगात थमा गयी
भर रूह को बदरी के आगोश में
छम छमा छम मेघ बरसा गयी
भोर की बारिस चुपके से
निंदिया चुरा ले गयी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलमंगलवार (09-08-2016) को "फलवाला वृक्ष ही झुकता है" (चर्चा अंक-2429) पर भी होगी।
ReplyDelete--
मित्रतादिवस और नाग पञ्चमी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी
Deleteशुक्रिया
सादर
मनोज
वाह भोर की बारिश और आपका रूमानी मिजाज़।
ReplyDeleteआदरणीय दीदी
Deleteतहे दिल से शुक्रिया
सादर
मनोज