जिन्दगी तू पलट के देखती क्यों नहीं
गुजरे लम्हों को समेटती क्यों नहीं
माना यादें वो रुलाती हैं
पर कोई लम्हा ऐसा भी था
जो सिर्फ और सिर्फ मेरा था
सिमट जाये ए यादों के पन्नों में
पहले इसके
ए जिंदगी उस पल के झरोखें से
एक बार फिर बचपन का अहसास करादे
जो लम्हा मेरा था
एक बार फिर उससे मिला दे
एक बार फिर उससे मिला दे
गुजरे लम्हों को समेटती क्यों नहीं
माना यादें वो रुलाती हैं
पर कोई लम्हा ऐसा भी था
जो सिर्फ और सिर्फ मेरा था
सिमट जाये ए यादों के पन्नों में
पहले इसके
ए जिंदगी उस पल के झरोखें से
एक बार फिर बचपन का अहसास करादे
जो लम्हा मेरा था
एक बार फिर उससे मिला दे
एक बार फिर उससे मिला दे
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-07-2016) को "खिलता सुमन गुलाब" (चर्चा अंक-2410) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी
ReplyDeleteशुक्रिया
सादर
मनोज