इश्क़ बेचने चला था
उधार में दर्द खरीद लाया
नीम हाकिम सब को दिखलाया
मगर दर्द की दवा कोई ना कर पाया
मर्ज ए इतना गहरा हो चला
साकी ने भी किनारा कर लिया
तड़प दिल से आँखों में उतर आयी
पर अश्कों की माला फिर भी मर्ज भुला ना पाई
कहा फिर दिल ने हौले से
दर्द लिया जिससे निदान उसकी पास
रोग लिया जब इश्क़ का
दुनिया का उसमे क्या काम
करले इकरार उसकी चाहत का
दर्द तुरंत काफूर जायेगा
उधार में दर्द खरीद लाया
नीम हाकिम सब को दिखलाया
मगर दर्द की दवा कोई ना कर पाया
मर्ज ए इतना गहरा हो चला
साकी ने भी किनारा कर लिया
तड़प दिल से आँखों में उतर आयी
पर अश्कों की माला फिर भी मर्ज भुला ना पाई
कहा फिर दिल ने हौले से
दर्द लिया जिससे निदान उसकी पास
रोग लिया जब इश्क़ का
दुनिया का उसमे क्या काम
करले इकरार उसकी चाहत का
दर्द तुरंत काफूर जायेगा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-05-2016) को "बेखबर गाँव और सूखती नदी" (चर्चा अंक-2344) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'