बात जो मदिरालय की पुकार में
ना वो मस्जिद की अजान में
ना वो मंदिर के भगवान में
छू लेती है दिल को इसकी जो बात
यहाँ नहीं कोई महजब की दीवार
एक ही किश्ती के यहाँ सब खैवन्हार
छलकाती है जब ए जाम
जन्नत उत्तर आती हैं तब धरा के पास
थामी जिसने भी इसकी पतवार
खुद वो खुदा बन गया
सुरा के रंग समाय
सुरा के रंग समाय
ना वो मस्जिद की अजान में
ना वो मंदिर के भगवान में
छू लेती है दिल को इसकी जो बात
यहाँ नहीं कोई महजब की दीवार
एक ही किश्ती के यहाँ सब खैवन्हार
छलकाती है जब ए जाम
जन्नत उत्तर आती हैं तब धरा के पास
थामी जिसने भी इसकी पतवार
खुद वो खुदा बन गया
सुरा के रंग समाय
सुरा के रंग समाय
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