Sunday, February 14, 2016

जीना

तू गुज़रे कल की बात ना कर

आने वाले कल की बात कर

सँवर जाएगा मुकद्दर

वक़्त को हमसफ़र बना के चल

तस्वीर फ़िर रंग जायेगी

महफ़िल क़ामयाबी की जब सज जायेगी

माना जो गुज़र गया वो अपना ना था

पर आनेवाला जो सपना था

वही एक पल तो अपना था

क़वायद इसलिए जिंदगी की तू सीख ले

कल के बदले आज में जीना सीख ले

सुरा के रंग

बात जो मदिरालय की पुकार में

ना वो मस्जिद की अजान में

ना वो मंदिर के भगवान में

छू लेती है दिल को इसकी जो बात

यहाँ नहीं कोई महजब की दीवार

एक ही किश्ती के यहाँ सब खैवन्हार

छलकाती है जब ए जाम

जन्नत उत्तर आती हैं तब धरा के पास

थामी जिसने भी इसकी पतवार

खुद वो खुदा बन गया

सुरा के रंग समाय

सुरा के रंग समाय