चला था अकेला जिस नयी राह पर
मुसाफ़िर तो यूँ अनेक मिले उस राह पर
हमसफ़र कोई मिला नहीं मगर उस राह पर
गुजरती घड़ियाँ जैसे सादिया बन गयी
वक़्त जैसे ठहर गया उस राह पर आके
भूलभुलैया थी पगडंडियों की उस राह के आगे
कदम रुक गए उस राह पे आके
दिशाहीन हो भटक गया उस राह के आगे
नामों निशां ना था मंजिल का उस राह के आगे
कशमकश की इस राह पे आके
अब तो यह भी भूल गया जाना किस राह के आगे
अब तो यह भी भूल गया जाना किस राह के आगे
मुसाफ़िर तो यूँ अनेक मिले उस राह पर
हमसफ़र कोई मिला नहीं मगर उस राह पर
गुजरती घड़ियाँ जैसे सादिया बन गयी
वक़्त जैसे ठहर गया उस राह पर आके
भूलभुलैया थी पगडंडियों की उस राह के आगे
कदम रुक गए उस राह पे आके
दिशाहीन हो भटक गया उस राह के आगे
नामों निशां ना था मंजिल का उस राह के आगे
कशमकश की इस राह पे आके
अब तो यह भी भूल गया जाना किस राह के आगे
अब तो यह भी भूल गया जाना किस राह के आगे
No comments:
Post a Comment