Tuesday, December 15, 2015

व्यभिचार

वक़्त ने जैसे किनारा कर लिया

परवाज़ भरने से पहले

दरिंदों ने जकड़ लिया

और पर कटे लहूलुहान परिंदों सा

मरने को छोड़ दिया

एक मासूम कली को

फूल बनने से पहले रौंद दिया

व्यभिचार की इस चरम सीमा ने

मानव से मानव कहलाने का हक़ छीन लिया

घिनौनें कृत की पाश्वता ने

खोख का हरण कर

रावण को भी लज्जा दिया

जलने के लिया मानो कायनात को 

लाख का महल बना दिया।

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