जमघट था यारों का
मगर अकेला खड़ा था तन्हाई में
गुम थी परछाई भी
अकेला खड़ा लड़ रहा था तन्हाई से
खामोश हो चुकी थी जुबाँ भी
पथरा गयी थी आँखें भी
लफ्ज कोई मिल नहीं रहे थे
लव जैसे खुल नहीं रहे थे
इस पल संग किसीका ना था
नजारा कुछ ऐसा था
सब कुछ होते हुए भी
पास अपने कुछ ना था
पास अपने कुछ ना था
मगर अकेला खड़ा था तन्हाई में
गुम थी परछाई भी
अकेला खड़ा लड़ रहा था तन्हाई से
खामोश हो चुकी थी जुबाँ भी
पथरा गयी थी आँखें भी
लफ्ज कोई मिल नहीं रहे थे
लव जैसे खुल नहीं रहे थे
इस पल संग किसीका ना था
नजारा कुछ ऐसा था
सब कुछ होते हुए भी
पास अपने कुछ ना था
पास अपने कुछ ना था