Sunday, October 11, 2015

दीवार

ये गम तू कुछ इस तरह मुस्करा

बबंडर

ग़मों की आँधियों के

मंजिल अपनी भटक जाए

और खिलखिलाती धूप भी

सौगात में

आँसुओ की ताबीर लिए चली आए

माना मुश्किल बड़ा ही यह इम्तिहान

पर छोड़ दिया जो कफ़न एक बार

बिन जनाजे ही

दफ़न हो जायेंगे सारे गम गुब्बार

ले आयेगा सकून

आँसुओं की फुहार

और बहा ले जायेगा संग अपने

हर रंजो गम की दीवार

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