मैं पानी पे नाम उसका लिखता रहा
वो रेत के महल बनाती रहीं
सपनों की इस डोर को
लहरों का ख़ौफ़ ना था
रिश्तों की इस माला को
बिखरते घरोंदों का रंज ना था
थी बस एक ही लगन
चाहे उजड़ते रहे आशियाँ
मिटते रहे नामोनिशां
मगर सपनें आँखों में
यूँ ही बस पलते रहे
ओर सपनें बस यूँ ही पलते रहे
वो रेत के महल बनाती रहीं
सपनों की इस डोर को
लहरों का ख़ौफ़ ना था
रिश्तों की इस माला को
बिखरते घरोंदों का रंज ना था
थी बस एक ही लगन
चाहे उजड़ते रहे आशियाँ
मिटते रहे नामोनिशां
मगर सपनें आँखों में
यूँ ही बस पलते रहे
ओर सपनें बस यूँ ही पलते रहे