वो मोड़ कुछ ओर था
ये मोड़ कुछ ओर है
तू खाब्बों की ताबीर थी
मैं गुनाहों की तस्वीर था
फ़ासलों के इस दरमियाँ भी
डोर कोई अनजानी बँधी थी
पर इस मुक़ाम को
मंजिल की कहा सौगात थी
तस्वीर के इस पहलू को
रंगों से जैसे कोई नाराजगी थी
मानों खफा हो दिल की वादियाँ
अधूरी साँसों में
धड़कने टटोल रही थी
साक्षी थी जो वफ़ा की
बानगी उसकी तलाश रही थी
पर उजड़ चुका था घरौंदा
मगर दिल को ये खबर तक ना थी
मगर दिल को ये खबर तक ना थी
ये मोड़ कुछ ओर है
तू खाब्बों की ताबीर थी
मैं गुनाहों की तस्वीर था
फ़ासलों के इस दरमियाँ भी
डोर कोई अनजानी बँधी थी
पर इस मुक़ाम को
मंजिल की कहा सौगात थी
तस्वीर के इस पहलू को
रंगों से जैसे कोई नाराजगी थी
मानों खफा हो दिल की वादियाँ
अधूरी साँसों में
धड़कने टटोल रही थी
साक्षी थी जो वफ़ा की
बानगी उसकी तलाश रही थी
पर उजड़ चुका था घरौंदा
मगर दिल को ये खबर तक ना थी
मगर दिल को ये खबर तक ना थी
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