वात्सल्य की ख़ोज में
निकला हुँ अनजानी मोड़ पे
छू ले कोई मर्मस्पर्शी चेतना आख़िर
स्पंदन से जिसके जग जाए
वात्सलय भावना सारी
ना कोई वेदना हो
ना कोई संवेदना हो
सिर्फ़ वात्सलय का आगाज़ हो
आवेग में जिसकी
रूह को सुकून का अहसास हो
इंद्रधनुषी रंगो से सुसज्जित
वात्सलय की इस अनुभूति में
आत्मा से परमात्मा एकाकार हो
आत्मा से परमात्मा एकाकार हो
निकला हुँ अनजानी मोड़ पे
छू ले कोई मर्मस्पर्शी चेतना आख़िर
स्पंदन से जिसके जग जाए
वात्सलय भावना सारी
ना कोई वेदना हो
ना कोई संवेदना हो
सिर्फ़ वात्सलय का आगाज़ हो
आवेग में जिसकी
रूह को सुकून का अहसास हो
इंद्रधनुषी रंगो से सुसज्जित
वात्सलय की इस अनुभूति में
आत्मा से परमात्मा एकाकार हो
आत्मा से परमात्मा एकाकार हो