आरजू मोहब्बत से की
रुसवा ज़माने ने ने कर दिया
रंजो गम की दास्ताँ को
साकी भी भुला ना सकी
खामोश लबों के दर्द को
साकी भी बयां ना कर सकी
सिसकते अरमानों को
मोहब्बत के घरौंदे में
पनाह दिला ना सकी
पनाह दिला ना सकी
रुसवा ज़माने ने ने कर दिया
रंजो गम की दास्ताँ को
साकी भी भुला ना सकी
खामोश लबों के दर्द को
साकी भी बयां ना कर सकी
सिसकते अरमानों को
मोहब्बत के घरौंदे में
पनाह दिला ना सकी
पनाह दिला ना सकी
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