तन्हाई को आवाज़ दू तो
शब्दों के घुँघरू बिखर जाते हैं
एक परछाई की तम्मना में
लब्ज़ ख़ामोश हो जाते हैं
गुजरती क्या हैं इस दिल पे
ये ना पूछों यारों
एक एक पल जैसे
एक सदी बन जाती हैं
खुदगर्ज़ी के आलाम में जैसे
जिंदगी सिमट जाती हैं
ओर इन फ़ासलों के दरमियाँ
ख़ामोशी घऱ अपना बना लेती हैं
घऱ अपना बना लेती हैं
शब्दों के घुँघरू बिखर जाते हैं
एक परछाई की तम्मना में
लब्ज़ ख़ामोश हो जाते हैं
गुजरती क्या हैं इस दिल पे
ये ना पूछों यारों
एक एक पल जैसे
एक सदी बन जाती हैं
खुदगर्ज़ी के आलाम में जैसे
जिंदगी सिमट जाती हैं
ओर इन फ़ासलों के दरमियाँ
ख़ामोशी घऱ अपना बना लेती हैं
घऱ अपना बना लेती हैं
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