Friday, May 15, 2015

जुगलबंदी

जुगलबंदी जब मेरी तेरी होगी

प्यार के तरानों की

स्वर लहरियाँ तब गूँजेगी

दिलों की इस जुगलबंदी में

सिर्फ प्रेम गीतों की लड़ियाँ होगी

संगम ऐसा होगा

जैसे स्वर और ताल की कड़ियाँ होगी

मैं और तुम से हम की सुन्दर रचना होगी

एकाकार सरगम की जैसे

सुहानी रिमझिम बरसात होगी

जुगलबंदी जब मेरी तेरी होगी

प्यार के तरानों की

स्वर लहरियाँ तब गूँजेगी

स्वर लहरियाँ तब गूँजेगी

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-05-2015) को "धूप छाँव का मेल जिन्दगी" {चर्चा अंक - 1978} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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