बड़ी उल्फ़त है इस ज़माने में
साया भी साथ नहीं देता
इस खुदगर्ज़ ज़माने में
नासिर भी नहीं होती नजरें
मेहरबाँ हो जाए ताकि तक़दीर अपनी
और टूट जाए बंदिशों के ताले
साया भी साथ नहीं देता
इस खुदगर्ज़ ज़माने में
नासिर भी नहीं होती नजरें
मेहरबाँ हो जाए ताकि तक़दीर अपनी
और टूट जाए बंदिशों के ताले
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