Friday, May 8, 2015

उल्फ़त

बड़ी उल्फ़त है इस ज़माने में

साया भी साथ नहीं देता

इस खुदगर्ज़ ज़माने में

नासिर भी नहीं होती नजरें

मेहरबाँ हो जाए ताकि तक़दीर अपनी

और टूट जाए बंदिशों के ताले

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