प्यार की तड़प में नयनों से जब अश्रु धारा बहती है
लहू भी तब सिरहन जाता है
अन्तर्मन से निकली यह वेदना
जब करती है
चितत्कार के पुकार
करुण धारा भी बन जाती है तब प्रलय तूफ़ान
उजड़ जाता है मानो जैसे सारा संसार
ओर पसर जाता है वीरानगी का अन्धकार
ओर पसर जाता है वीरानगी का अन्धकार
लहू भी तब सिरहन जाता है
अन्तर्मन से निकली यह वेदना
जब करती है
चितत्कार के पुकार
करुण धारा भी बन जाती है तब प्रलय तूफ़ान
उजड़ जाता है मानो जैसे सारा संसार
ओर पसर जाता है वीरानगी का अन्धकार
ओर पसर जाता है वीरानगी का अन्धकार