रिश्तों से डर लगता है अब
किसी को अपना कहने से भय लगता है अब
रिश्तों को भूल अपने ही
पराये बन जाए सपनें जैसे जब
कैसे नाता उनसे जोड़े तब
कच्चे धागे की इस डोर को
जोड़े फिर कैसे हम
रिश्तों से डर लगता है अब
बार बार के तानों से ही
रिश्तों को जो यह नया आयाम मिला
मुकाम रिश्तों का फिर एक नया बना
रिश्तों का इसीलिए यह अंजाम हुआ
किसी को अपना कहने का अब दुःसाहस ना हुआ
और रिश्तों से भय लगने लगा है अब
किसी को अपना कहने से भय लगता है अब
रिश्तों को भूल अपने ही
पराये बन जाए सपनें जैसे जब
कैसे नाता उनसे जोड़े तब
कच्चे धागे की इस डोर को
जोड़े फिर कैसे हम
रिश्तों से डर लगता है अब
बार बार के तानों से ही
रिश्तों को जो यह नया आयाम मिला
मुकाम रिश्तों का फिर एक नया बना
रिश्तों का इसीलिए यह अंजाम हुआ
किसी को अपना कहने का अब दुःसाहस ना हुआ
और रिश्तों से भय लगने लगा है अब
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