आज नींद फिर दगा दे गयी
सपने शुरू होने से पहले आँखे खुल गयी
आसमां भी अकेला था उसपर
ना सितारों का साथ था
ना चाँद में भी वो बात थी
टहरी टहरी सी रात की तन्हाई थी
झुकी झुकी बोझिल पलकें
करवटे तलाश रही थी
पर नींद सपनों से कोसों भाग रही थी
ओर गुजर नहीं यह रात थी
हर पल लम्बी घनी रात का अहसास करा रही थी
हर पल लम्बी घनी रात का अहसास करा रही थी
सपने शुरू होने से पहले आँखे खुल गयी
आसमां भी अकेला था उसपर
ना सितारों का साथ था
ना चाँद में भी वो बात थी
टहरी टहरी सी रात की तन्हाई थी
झुकी झुकी बोझिल पलकें
करवटे तलाश रही थी
पर नींद सपनों से कोसों भाग रही थी
ओर गुजर नहीं यह रात थी
हर पल लम्बी घनी रात का अहसास करा रही थी
हर पल लम्बी घनी रात का अहसास करा रही थी
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