गूँथ रहा हु शब्दों की माला
हर शब्द महके जैसे गुलाब की माला
निकले जब मुख मंडल से
बेसुरी राग भी बन जाए
कोकिल कंठनि सी मधुर भाषा
गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला
स्पर्श कर दे मन मस्तिष्क
और द्रवित हो पिघल जाए
बैमनस्य की भावना
गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला
खिल उठे हर गुल
ढह जाए अहंकार की भावना
समाहित हो जिसमें
अपनेपन की भावना
गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला
हर शब्द महके जैसे गुलाब की माला
निकले जब मुख मंडल से
बेसुरी राग भी बन जाए
कोकिल कंठनि सी मधुर भाषा
गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला
स्पर्श कर दे मन मस्तिष्क
और द्रवित हो पिघल जाए
बैमनस्य की भावना
गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला
खिल उठे हर गुल
ढह जाए अहंकार की भावना
समाहित हो जिसमें
अपनेपन की भावना
गूँथ रहा हु ऐसे शब्दों की माला