कल तक जो शहर अपना लगता था
शहर वो आज पराया लगता है
रूह थी तू जिसकी
तेरे चले जाने से
शहर वो बेगाना सा लगता है
बसते थे जज्बात जहां
वो शहर अब सैलाब का दरिया लगता है
चमन था जो तेरे हुस्न से
वो शहर आज उजड़ा वीरान लगता है
कल तक जो शहर अपना लगता था
शहर वो आज पराया लगता है
रूह थी तू जिसकी
तेरे चले जाने से
शहर वो बेगाना सा लगता है
कल तक जो शहर अपना लगता था
शहर वो आज पराया लगता है
शहर वो आज पराया लगता है
रूह थी तू जिसकी
तेरे चले जाने से
शहर वो बेगाना सा लगता है
बसते थे जज्बात जहां
वो शहर अब सैलाब का दरिया लगता है
चमन था जो तेरे हुस्न से
वो शहर आज उजड़ा वीरान लगता है
कल तक जो शहर अपना लगता था
शहर वो आज पराया लगता है
रूह थी तू जिसकी
तेरे चले जाने से
शहर वो बेगाना सा लगता है
कल तक जो शहर अपना लगता था
शहर वो आज पराया लगता है
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteNew post ऐ जिंदगी !
Thanks sir
Deleteबसते थे जज्बात जहां
ReplyDeleteवो शहर अब सैलाब का दरिया लगता है
एक व्यक्ति के जाने के बाद क्या हो जाता है खुद को?
सुन्दर
Thanks sir
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