अस्तगामी सूर्य कि लालिमा
कर रही नीले अम्बर को प्रखर
परिंदो का अग्रसर झुण्ड
कर रहा दिव्यमान को मुखर
सांझ कि बेला
ओढ़ घटाओँ कि चुनरिया
कर रही चाँदनी को बेताब
सिमट आये चाँद आगोश में
ओर बुझ जाये दूरियों की आगाज
कर रही नीले अम्बर को प्रखर
परिंदो का अग्रसर झुण्ड
कर रहा दिव्यमान को मुखर
सांझ कि बेला
ओढ़ घटाओँ कि चुनरिया
कर रही चाँदनी को बेताब
सिमट आये चाँद आगोश में
ओर बुझ जाये दूरियों की आगाज
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