Friday, April 11, 2014

सखी

मयखाने की बयार कि दस्तक सुन

हम साकी की हवा के संग बह चले

क्योंकि मिला ना था खुदा हमें कहीं

न मंदिर में  न मस्जिद में

पर चढ़ते ही जिन्नें मदिरालय की

खुल गए बंद कपाट ह्रदय के

थामा मदिरा ने जो आगोश में

हर गम भूला

हम मदहोश होते चले गए

साकी सखी बन जाम छलकाती गयी

और हम पैमानों में आँसू मिला पीते गए

और हम पैमानों में आँसू मिला पीते गए

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