पितृ सुख से बड़ा ना सुख कोई
परछाई बन साये तले जिसके
पायी जिसने छत्र छाया इसकी
प्रखर बन गयी जिन्दगानी उसकी
प्रेरणा मान अभिमान से
पकड़ी उंगली जिसने पितृ कि
प्रेम सुधा फिर बन गयी
स्नेह भरी
पितृ रस कि वह मधुर गाथा
पितृ रस कि वह मधुर गाथा
परछाई बन साये तले जिसके
पायी जिसने छत्र छाया इसकी
प्रखर बन गयी जिन्दगानी उसकी
प्रेरणा मान अभिमान से
पकड़ी उंगली जिसने पितृ कि
प्रेम सुधा फिर बन गयी
स्नेह भरी
पितृ रस कि वह मधुर गाथा
पितृ रस कि वह मधुर गाथा
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