खामोशियों को आवाज़ दो
गूँजेगी वो दिल के हर ओर
टकरा के पूछेगी दिल से
गुमशुम खामोश क्यों हो तुम
जन्नत यही है मेरे यार
जहाँ खड़े हो तुम बन मेरे सरताज
फिर किस उलझन में
यूँ खामोश उदास हो मेरे यार
हर जबाब है इन खामोशियों के पास
तलाशते फिर रहे हो फिर क्यों कही ओर
पुकारोगे जो दिल से
चहक चहक बोल उठेगी खामोशियाँ हर ओर
गूँजेगी वो दिल के हर ओर
टकरा के पूछेगी दिल से
गुमशुम खामोश क्यों हो तुम
जन्नत यही है मेरे यार
जहाँ खड़े हो तुम बन मेरे सरताज
फिर किस उलझन में
यूँ खामोश उदास हो मेरे यार
हर जबाब है इन खामोशियों के पास
तलाशते फिर रहे हो फिर क्यों कही ओर
पुकारोगे जो दिल से
चहक चहक बोल उठेगी खामोशियाँ हर ओर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (09-02-2014) को "तुमसे प्यार है... " (चर्चा मंच-1518) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रचना संकलन के धन्यवाद्
Deleteशुक्रिया महोदय
ReplyDeleteकोमल भावो की और मर्मस्पर्शी.. अभिवयक्ति .
ReplyDeleteप्रोत्साहन के धन्यवाद्
Deleteसुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteशुक्रिया
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