नींद न जाने कहाँ खो गयी
जिंदगी सपनों कि दुनिया से बेजार हो गयी
खाब्ब अब आधे अधूरे से रह गए
नज़ारे सारे
नयनों के सामने सिमट गए
रोग ए कैसा लगा
बोझिल पलकें भी
जैसे करवटों में बदल गयी
ओर सुहानी रात कि घड़ियाँ
तारें गिनते हुए गुजर गयी
तारें गिनते हुए गुजर गयी
जिंदगी सपनों कि दुनिया से बेजार हो गयी
खाब्ब अब आधे अधूरे से रह गए
नज़ारे सारे
नयनों के सामने सिमट गए
रोग ए कैसा लगा
बोझिल पलकें भी
जैसे करवटों में बदल गयी
ओर सुहानी रात कि घड़ियाँ
तारें गिनते हुए गुजर गयी
तारें गिनते हुए गुजर गयी
महोदय हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग से जुड़ने कि लिए धन्यवाद . आप कि हौसला अफजाई से मेरे कलम में ओर निखार आ जाये .
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