Sunday, February 2, 2014

आधे अधूरे से खाब्ब

नींद न जाने कहाँ खो गयी

जिंदगी सपनों कि दुनिया से बेजार हो गयी

खाब्ब अब आधे अधूरे से रह गए

नज़ारे सारे

नयनों के सामने सिमट गए

रोग ए कैसा लगा

बोझिल पलकें भी

जैसे करवटों में बदल गयी

ओर सुहानी रात कि घड़ियाँ

तारें गिनते हुए गुजर गयी

तारें गिनते हुए गुजर गयी

3 comments:

  1. महोदय हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. मेरे ब्लॉग से जुड़ने कि लिए धन्यवाद . आप कि हौसला अफजाई से मेरे कलम में ओर निखार आ जाये .

      Delete