Tuesday, December 17, 2013

मंगल बेला

सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी

गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी

जैसे कोई कंचन काया थी

परिणय सूत्र कि जैसे मंगल बेला आयी थी

गूँज रही कहीं पास ही जैसे शहनाई थी

कितना हसीन पाक था ये मंजर

कुदरत भी जैसे साक्षी बन आयी थी

बारिश कि शबनमी बूंदे

पिरों रही जैसे मोतियों कि माला थी

सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी

गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी

जैसे कोई कंचन काया थी

Wednesday, December 4, 2013

आस पास

कभी कभी यह अहसास होता है

तुम हो

यहीं कहीं मेरे आस पास हो

वो पतों कि सनसनाहट

पैरों कि आहट

हवाओं कि सरसराहट

मधुर बोलों कि गुनगुनाहट

चाँदनी कि झनझनाहट

झांझर कि हिनहिनाहट

मृदंग कि थपथड़ाहट

नयनों कि छटपटाहट

दीवानगी का ये आलम संजोती है

परछाईयों में भी तुम्हें टटोलती है

ख्यालों में भी अक्स तेरा ही बुनती है

कभी कभी दिल को अहसास करा जाती है

तुम हो

यहीं कहीं मेरे आस पास हो



Tuesday, December 3, 2013

साँसों कि साज

हम उन राहों में जिंदगी छोड़ आये

जहाँ कभी दिल कि शमा रोशन हुआ करती थी

चमन कि आगोश में शाम ढला करती थी

साक्षी थी वो हसीन चाँदनी रात

करवट ले ली थी किस्मत ने

जब कुदरत के हाथ

सुन के भी दिल कि रुंदन पुकार

धड़कने लौटा ना पायी

रूठी साँसों कि साज

Monday, November 25, 2013

राह

ए अजनबी न जाने क्यों

ए निगाहें हर पल तुम्हें तलाशती है

क्या रूप है जिसको ए निहारती है

वजूद इसका ना जाने कैसे पनपा

नाजुक से इस दिल के कोने में

मुलाकात अब अक्सर होती है

बंद पलकों के झरोकों में

सपनों के इस अनछुए संसार की

जाने कैसी कशिश का

कौन सा पैगाम है ए

अरमानों कि दहलीज़ पर खड़ी निगाहें

करने आलिंगन तुम्हें ए अजनबी

तलाशती दिल कि राहें है

तलाशती दिल कि राहें है 

Tuesday, November 19, 2013

सिसकती जिंदगी

देखो मरघट बन गया संसार

सिसकती जिंदगी पड़ी राहों में

पर करहाहट किसीको सुनाई देती नहीं

मानो अंधो बहरों का शहर हो जैसे कोई

पर रफ़्तार जिंदगी कि कम होती नहीं

लगाम जिंदगी कि जैसे निकल गयी हाथ से

फुर्सत नहीं सहारा दे दे

बेदम हो रही जो जिंदगी आँखों के सामने

जनाजा निकल गया जिंदगानी का

जब बिन कफ़न ही दफ़न हो गयी जिंदगी 

इन अंधे बहरों के संसार में

इन अंधे बहरों के संसार में


सपने

छोटे छोटे सपनो कि बड़ी बड़ी दास्ताँ है

हालातों के दरमियाँ

बुनते बिखरते सपनो कि दास्ताँ है

बड़ा ही मजबूर लाचार विवश

दर्द से भरा संसार है 

टूट जाते है सपने

हक़ीक़त कि परछाई नजर जब आती है

कदर नहीं इंसान कि इस संसार को

दिल तोड़ने में ही इसे आनंद आता है

फिर भी

इंसान को सपने बुनने में ही आनंद आता है



Monday, October 21, 2013

आंसुओ की सौगात

आंसुओ से पुरानी पहचान है

जन्म के समय कुदरत से मिली सौगात है

खारी होती आंसुओ की धार है

मगर अनमोल होती इनकी पुकार है

ख़ुशी हो या गम

छलकाती  जब ये अपना पैमाना है

रो पड़ता दिल बेचारा है 

इनको नहीं समय का कोई ठोर ठिकाना है

वक़्त बेवक्त चल दे देती है

छोड़ पलकों का सहारा  है

 

महत्वाकांक्षाये

क्यों कैलाश चढूं

क्यों गंगा स्नान करूँ

विसर्जित करदी महत्वाकांक्षाये जब सारी

बलिदानी नहीं मैं कोई

आहुति दे दी तब भी अरमानों की अपनी

संवर जाए शायद जिन्दगी मेरी

मिल जाए मोक्ष यहीं कहीं पर

क्यों भटकू यहाँ वहाँ

ईश्वर जब स्वयं विराज रहे

मेरे ह्रदय बीच आकर

आत्म चिंतन करू मंथन करू

क्यों वैराग्य मैं अपनाऊ

बस नश्वर तन भोगू

मानव कर्म अपने करते जाऊ 

चाँद की गुजारिश

गुजारिश की है चाँद ने

छुपा ले अम्बर बाहों के आगोश में

इज़हार कर रही हूँ तम्मना

अटखेलियाँ करूँ समा जाऊ

खो जाऊ तेरी लहराती वयार में

घूँघट बन जाए तू मेरा

छुपा लू मुखड़ा तेरे बादलों की आट में

इतराऊ रूप बदल बदल शर्माऊ

दीवाना बना दू मेरे घटते बड़ते आकार से

गुजारिश की है चाँद ने

छुपा ले अम्बर बाहों के आगोश में
 

Monday, October 7, 2013

प्यार के नगमे

तेरे प्यार के नगमों पे मैं इतराऊ

बन पवन का झोंका

तेरे संग संग लहराऊ

तू ही है जन्नत मेरी

मैं तेरी आँखों में बस जाऊ

तेरे गीतों पे दीवानों सा इतराऊ

साज बन तरानों सा बहता जाऊ

मैं तेरी सरगम में घुल मिल जाऊ

दिल में तेरे मैं बस जाऊ

तेरे प्यार के नगमों पे मैं इतराऊ   

Friday, October 4, 2013

प्यार की वयार

मैं वो सुन रहा हूँ

दिल जो तेरा कह रहा है

थामा  जो हाथ वो कभी छूटे ना

ओ मेरे यार मेरे प्यार

ये मैं सुन रहा हूँ

सुन ले तू भी ये मेरे प्यार

करदी है धड़कने मैंने अपनी तेरे नाम

ओ मेरे यार मेरे प्यार

झुका के पलके कर लिया तूने

मेरे प्यार को अंगीकार

ओ मेरे यार मेरे प्यार

जन्मो जन्मो बहती रहे 

अपने प्यार की वयार

ओ मेरे यार मेरे प्यार

मैं वो सुन रहा हूँ

दिल जो तेरा कह रहा है

ओ मेरे यार मेरे प्यार 

Wednesday, October 2, 2013

सखी

ओरी सखी रे सुन रे सखी रे

मैं तो आज मयूर बन नाचु रे

कभी तेरे माथे की बिंदिया बन इतराऊ  रे

कभी तेरा घूँघट बन शरमाऊं रे 

ओरी सखी रे सुन रे सखी रे

मैं तो आज गगन गगन उड़ता फिरू रे

कभी तेरा आँचल बन लहराऊ रे

कभी तेरी पायल बन खंनखाऊ रे

ओरी सखी रे सुन रे सखी रे

मैं तो गीत आज मिलन के गाऊं रे

कभी तेरे बोल बन गुनगुनाऊं रे

कभी तेरे लबों पे सज जाऊं रे

ओरी सखी रे सुन रे सखी रे

मैं तो आज तेरा बन जाऊं रे

कभी तेरी साँसे बन मुस्काऊं रे

कभी तेरी धड़कन बन दिल में बस जाऊं रे

ओरी सखी रे सुन रे सखी रे

दिल की मेरे सुनले रे

ओरी सखी रे सुन रे सखी रे

ओरी सखी रे सुन रे सखी रे 

झूठी शान

दम घुटता है झूठी शानों शौकत से

तड़पता है दिल हालातों के चुंगल में

कठपुतली बन नाच रहा हूँ

फंस मोह माया के जाल में

परिस्थिति की विडम्बना भी

कैसी विचत्र है बनी

जरुरत है आज जो सबसे बड़ी

उसी सामाजिक हालतों ने

रूबरू करवा दी सच्चाई

जिन्दगी की रफ़्तार से


 

Thursday, September 26, 2013

स्वाभिमान

हवायें रुख बदल सकती है 

गति पर मेरी बदल सकती नहीं 

बाँध ले मुझे अपने पाश में 

ताकत इनमे इतनी नहीं 

स्वछन्द विचरण की अनुभूति 

चारदीवारी में मिल सकती नहीं 

जकड ले क़दमों को मेरे 

बेड़ियाँ वो अब तलक बनी नहीं 

शर्तों पे अपनी मैं जीता हूँ 

दासता मुझे गंवारा नहीं 

अभिमान है अपने स्वाभिमान पे 

राह की कोई बाधा तभी बड़ी नहीं 

Monday, September 16, 2013

चेतना

मैं ख्यालों में सपने बुनता गया

एक अनजानी तस्वीर में

रंग भरता गया

पर खाब्ब हकीक़त नहीं बनते

यह भूलता गया

पहेली थी यह गहरी शायद

इन्द्रधनुषी इसकी छटा में

खोता चला गया

अच्छी लगती वो खाब्बों की ताबीर अगर

चेतना उसमे जगा गया होता 

प्यार का रंग

उनकी हसीन मुस्कराहट पे

आज फिर मर मिटने को दिल आया

जाने वो कौन सी कशिश थी

दिल को सिर्फ उनका ही ख्याल आया

तसब्बुर में कोई ओर था

बिन उनके दीदार को

चाँद भी फीका नजर आता

जूनून के इस रंग में

बेवफाई में भी उनकी

प्यार का रंग नजर आया 

ख्यालों की बारिस

ख्यालों की बारिस में भीगा करते थे

रूमानी वादियों में टहला करते थे

सफ़र का ये मोड़ बड़ा ही सुहाना था

अंदाज प्यार का बड़ा ही निराला था

यादों की ताबीर को

दिल से रूबरू किया करते थे

अक्सर तन्हाईयों में खुद से

तुम्हारा जिक्र किया करते थे

पहले तुम महफ़िल में नजर आते थे

अब चाँद के दीदार में नजर आते हो

अक्सर तुम यादों में भी

दिल के तारों को छेड़ जाते हो 

Wednesday, September 4, 2013

राहों में

क्यों मिले तुम उन राहों में

मंजिल जिनकी कोई ना थी

सिर्फ सपनों की दुनिया थी

और बेकरार जिंदगानी थी

मिल ना सके जो प्यार कभी

उस कशिश में वो आरजू कहा थी

जुदा थी जिन्दगी की राहे मगर

मिलन की आस फिर भी पास थी

सुलग रही थी जो चिंगारी सीने में

आंसुओ के सैलाब में वो भी गुम थी

क्यों मिले तुम उन राहों में

मंजिल जिनकी कोई ना थी

मंजिल जिनकी कोई ना थी

 

ख़त

ख़त आपको लिख भेजा है

हाले दिल वयां किया है

स्याही बना लहू को

दिल ए जज्बातों को उकेरा है

गुम हो ना जाए कही ये

खतों के अम्बार में

नजरे इनायत आपकी भी हो

हमारे प्यार भरे इकरार पे

ओ मेरी नूर ए नजर

बैरंग इसलिए ख़त भेज दिया है

सीने से जब आप इसे लगाओगी

बिन पढ़े ही

मजमु दिल में उतर आएगा 

Sunday, September 1, 2013

जिन्दगी की रफ़्तार

हाथ जो छूटा महबूब का

रफ़्तार जिन्दगी की थम गयी

खुदा माना था जिसे

वो महबूब हमसे रूठ गयी

था ऐतबार सबसे ज्यादा जिसपे

वो परछाई शून्य में कहीं खो गयी

ये खुदा अब तो यकीन रहा नहीं

खुद के साये पे भी मुझको

जिन्दगी के इस मुक़ाम पर

जीने की कोई वजह भी तो शेष ना बची

 

Monday, August 26, 2013

अपनी दुनिया

नम आँखों से तेरी विदाई देखते रहे

ख़ामोशी से तक़दीर की रुसवाई सहते रहे

हौसला इतना जुटा ना पाए

चाहत की अपनी खातिर अपनों से लड़ पाए

डोली आनी थी जो मेरे अँगना

विदा हो रही थी किसी ओर के अँगना

कैसे रचेगी मेहंदी उसके हाथों सजना

कैसे अब मैं जी पाऊंगा उसके बिना

सपनों में भी जिसे भुला ना पाऊंगा

सिर्फ उसकी यादों के सहारे कैसे मैं जिन्दा रह पाऊंगा

ख़त्म हो गयी अब सारी दुनिया

अपने ही हाथों उजाड़ दी मैंने अपनी दुनिया 

Saturday, August 24, 2013

खुशनुमा अहसास

कब तलक परछाइयों से डरते रहेंगे

सायों से लड़ते रहेंगे

आरजू अब बस इतनी सी है

पहले इसके की हवायें रुख मोड़ ले

पवन पुरबाई अठखेलियाँ करना छोड़ दे

दूरियाँ ये हम दोनों के दरमियाँ सिमट आय

एतराज मिलन का धडकनों को भी ना हो

मुलाक़ात जब दिल से दिल की हो

इस प्यार भरी सौगात का

हर पल खुशनुमा अहसास हो




बेखबर

 औ बेखबर तुम्हें खबर भी ना हुई

तुम दर्पण निहारती रही गयी

ओर हम तेरी आँखों से काजल चुरा ले गए

आईना इसके पहले टूट जाए

तुम दिल को अपने जरा संभाल लो

नादानी में कहीं होश ना गँवा बैठो

दर्पण से इसलिए अब तुम किनारा कर लो

निहारना हो अब जब कभी अपने आप को

हमारी आँखों में झाँक लिया करो

अक्स तुम्हे अपना नजर आ जायेगा

तस्वीर का दूसरा पहलू भी समझ आ जायेगा

तस्वीर का दूसरा पहलू भी समझ आ जायेगा

Monday, August 12, 2013

फ़रियाद

गुमनाम तुम होती तो

खुदा से मन्नते ना मांगता

हर दुआओं में

तेरी सलामती की फ़रियाद ना मांगता 

कबूल

कबूल कर ली हमने उस सौगात को

पैगाम छिपा था जिसमें

दुआयें नजर यार को

ढह गयी दीवारें

सिमट गए फासले

कशिश के इस पैगाम में

बदल गयी दुनिया

इश्क ए जूनून की राह में

मिल गया जैसे कोई  खुदा

कशिश की इस छावं में

कबूल कर ली हमने उस सौगात को

Friday, August 2, 2013

बेपनाह मोहब्बत

आरजू मैंने भी ये की थी

चाहत मुझको भी मिलेगी

नसीब इतना भी बुरा नहीं

की दुओं की फ़रियाद सुनाई नहीं देगी

चौखट से रब की कोई खाली लौटा नहीं

फिर क्यूँ मेरी तक़दीर में चाहत नहीं

कोई शख्स तो आखिर ऐसा होगा

जिसको भी इस नाचीज़ से बेपनाह मोहब्बत होगी 

Thursday, August 1, 2013

खौफ़

जिन्दगी ना जाने क्यूँ इतना सताती है

हर वक़्त खौफ़ के साये में सिमटी रहती है

दर्द जमाने का रास इसे आता नहीं

डर लगता है इसे किससे समझ आता नहीं

भागती फिरती अपने आप से

मिल गयी कोई रूह जैसे राह में

निहारती जब अपने को दर्पण में

देख अक्स सिरहन सी यह जाती है

सूनी आँखों से ना जाने क्या तलाशती है
 
 जिन्दगी ना जाने क्यूँ इतना सताती है

Monday, July 29, 2013

प्रीत

निंदिया  जगाये आधी आधी रतियाँ

बतियाँ करे तेरी सारी सारी रतियाँ

खाब्ब संजोये सारी सारी रतियाँ

निंदिया जगाये सपनों की दुनिया

करवटे बदले सारी सारी रतियाँ

मिन्नतें करे आधी आधी रतियाँ

लग गयी प्रीत तोहसे सजनिया

चुरा ले गयी दिल मेरा तेरी अँखियाँ

लुट गयी मोहरी निंदिया

रह गयी अब बस तोहरी  बतियाँ ही बतियाँ

निंदिया  जगाये आधी आधी रतियाँ

बतियाँ करे तेरी सारी सारी रतियाँ

 

Sunday, July 28, 2013

पेड़

पेड़ दरख्त कहते है

मेरी भी सुनते जाओ

सुध मेरी भी लेते जाओ

सिर्फ नारों से काम नहीं होता

वन बचाओं पेड़ लगाओ

ओर विकास के नाम

गर्दन मेरी रेंत डालों

अगर करनी ही रक्षा प्रयावर्णन की

कुदरत के विनाश से

तो दे दो जीने का अधिकार मुझे

नहीं तो ध्वंस हो जायेगी

सारी कायनात सृष्टि के प्रकोप से 

कशिश

जाने किस अहसास से

थामा था उन्होंने मेरा हाथ

एक प्यारी सी अनुभूति

दस्तक दे गयी इस दिल में

छिपी थी ना जाने उसमे क्या बात

छप गयी उसकी तस्वीर

इन आँखों में उतर आय

मर मिट उनकी सादगी पे

गुलाम हो गया दिल ये

उनकी करिश्माई कशिश पे आय 

क़त्ल

गुनाह वह बड़ा ही हसीन था

आँखों ने ही क़त्ल कर डाला था

नजरे ज्यूँ ही चार हुई

उन सुन्दर नयनों  से

थम गयी साँसे

डूब गया दिल

उन सुन्दर चंचल नयनों की

मोहिनी चाल में

क़त्ल कर दिया आँखों ने इस दिल का

आँखों ही आँखों में

वर्णन

किन लफ्जों में उस खूबसूरती का बखान करूँ

तारों भरी रात थी

सपनों  की बारात थी

उर्वशी सी कोई अप्सरा

आसमां से झाँक रही थी

कर दीदार चाँद के

मन ही मन मंद मंद मुस्का रही थी

नजरे  टकटकी लागये

इस पल को निहार रहे थे

समां बंधा था ऐसा

कब ढल गयी वो सुहानी रात

अहसास इसका आँखों के आस पास भी ना थी 

Saturday, July 27, 2013

संगी साथी

धमाकचोड़ी मौज मस्ती

बचपन के सब संगी साथी

बालमनों के छोटे से सपनों का संसार

फ़ुदकती जिन्दगी मचलते अरमान

तूफ़ान मचाती टोली

बेफिक्री का धुआं उड़ाते अहसास

बरसते रंग बी रंगे रंग

खिलते नये नये मौजो के द्वार

लुका छिपी आँख मिचोली

बचपन के सब संगी साथी

खेल कूद बस यही सपनों का संसार

बाकी कोई और नहीं अरमान

बाकी कोई और नहीं अरमान 

Saturday, July 13, 2013

खबर

खबर तेरी इस जहाँ को कहा थी

गुलदस्ते में छिपी बैठी

ज़माने की बेरुखी निहार रही थी

पल ये भी थोड़े थे

हकीक़त से मगर रूबरू थे

कल तलक जिस फूल के चर्चे आम थे

टूटते ही डाली से , सब वीरान थे

फिक्र कहा बेदर्द ज़माने को थी

सचमुच पल दो पल के बाद

जिन्दगी  गुमनाम थी

Wednesday, July 10, 2013

बूंद

हर बूँदों की अपनी कहानी है

कोई आँसुओ की रवानी

तो कोई बादलों का पानी है

अनमोल फिर भी हर बूंद

चाहे खारी या मीठी

गगरी का पानी है

बूँदों की इन बूंदा बाँदी में ही

इठलाती जीवन जिंदगानी है

छू जाती हर ह्रदय कोने को

बूँदों की ये अनमोल कहानी है

बूँदों की ये अनमोल कहानी है

Thursday, June 27, 2013

खूबसूरती

खूबसूरती की उनका

चाँद भी कायल हो गया

रूप रंग पे मुग्ध हो

दर्पण भी घायल हो गया

रिंझ

मृगनयनी चंचल हिरनी सी माया पे 

कंचन कोमल कामिनी सी काया पे

झुक गया आसमां भी आधा

देख

लाजों हया की हंसिनी मूरत

मुखड़े पे हँसी की सूरत

शरमा कुदरत का आफताब भी गया

खूबसूरती की उनका

चाँद भी कायल हो गया



Thursday, June 20, 2013

ज़माना

तुझसा हसीं कोई मिला नहीं

ज़माने को ये रास आया नहीं

बह गयी हर मर्यादायें

चाहत के इस सैलाब में

चढ़ पाती परवान दोस्ती

छुट गया इससे पहले दामन

हालातों के हिजाब में

नजर लग गयी अपनों की

चाहत के इस इकरार में

इबादत अब कोई शेष बची नहीं

जीवन के इस ठहराव पे 

ख़त्म हो गयी जिन्दगी

आंसुओ के सैलाब में



Tuesday, June 11, 2013

गुमनाम

वो गुमनाम थी

मैं बदनाम था

डोर फिर भी एक बंधी थी

कसूर निगाहों का ना था

बात दिल की क्योंकि

उसके गालों के तिल में थी

जुबाँ भी साथ दे ना पाती थी

बस तितलियों सी मंडराती

वो इस दिल जले को ओर जला जाती थी

खूबसूरती की वो मिशाल थी

फिर भी वो गुमनाम थी

क्योंकि घूँघट उसकी शान थी

पर इस दिल की गलियाँ

उसके इश्क में बदनाम थी

ओर वो इन खबरों से भी अनजान थी

आखिर वो एक गुमनाम थी



 

Saturday, June 1, 2013

दीदार

देखने चाँद के हुस्नों शब्बाब

गिरवी रख दी नींद हमने आज

मिन्नतें बादलों से की बार बार

रुख से नकाब हटा

पर्दा नशीं को बेपर्दा करदे एक बार

बेकरार रात की अधखुली पलकों ने भी

सपनों से गुजारिश इतनी सी की है आज

छोड़ सितारों की महफ़िल

जमीं पर आज उतर आ जाए चाँद

दीदार  हुस्न के ऐसे मिल जाय 

एक पल को भी पलक झपक ना पाय

Thursday, May 30, 2013

यादों की बारिस

यादों की बारिस हो

सपनों का संसार हो

रूमानी ख्यालों में

गुजरे पल के दीदार हो

रह ना जाए कोई बात अधूरी

क्योँ ना फिर एक हसीन मुलाक़ात हो

ठहर जाए ये समां यही

कहीं आँधियों का शोर ना हो

अफ्सानो के इस पल

अपने दरमियाँ कोई ओर ना हो

बस मेरी तन्हाई हो

ओर तेरी मीठी मीठी यादों का साथ हो

नजरे

जबसे तुमसे नजरे चार हुई

खुद से ये अनजान हुई

लुट गयी इनकी चंचल रोशनी

गुमशुम सी ये खामोश हुई

शरमों हया से झुकी हुई

ये तेरी गुलाम हुई

जबसे तुमसे नजरे चार हुई

खुद से ये अनजान हुई

Monday, May 27, 2013

एक अहसास

क्यों तुम सिर्फ एक अहसास हो

क्यों नहीं  मेरे पास हो

तलाशती है नजरे उस पल को

जन्म लिया इस अहसास ने जिस पल को

सोचता हु जब बंद कर आँखों को

तस्वीर तब बुनता हु इन अहसासों की

रंग भर जाते है इनमे दिल के अरमानों से 

जूनून बन गयी अब अहसास की यह छाया

मिलने को आतुर तुमसे

तलाश रही तेरा साया

फिर क्यों नहीं तुम मेरे पास हो

क्यों सिर्फ एक अहसास हो

क्यों सिर्फ एक अहसास हो

Monday, May 13, 2013

मेरी डाली के फूल

मेरी डाली के है दो सुन्दर फूल

इनकी हर पंखुड़ियों से झलके

किरण का नया स्वरुप

इनकी खुशबुओं से महके

मेरी बगिया का रूप

कोमल मासूम ये सुन्दर फूल

मेरी डाली के ये दो सुन्दर फूल

उपहार ये कुदरत का

नन्हें से ये दो फूल

जीवन ज्योत बन चमके

मेरी आँखों के ये नूर

मेरी डाली के ये दो सुन्दर फूल 

आँसुओ का दर्द

तुने आँसुओ में मेरा दर्द छिपा रखा है

ऐसे इन्हें रुलाया ना करो

दर्द को मेरे ऐसे सताया ना करो

तेरी ताकत है ये

ऐसे इनपे सितम ढाया ना करो

इन बेस्किमती नूरो को यूं ना बहाया करो

खुश रहो सदा इतना

मिलन इनसे फिर दुबारा ना हो

कर दो रहम बस इतना सा

दर्द को मेरे तुम अपनाया ना करो

रो रो के मुझे ओर रुलाया ना करो

रुलाया ना करो 

Wednesday, May 8, 2013

शुक्रिया

शुक्रिया ये जिन्दगी

उन खुश नुमा पलों के लिए

बदल के जिंदगानी

खोल दिए जन्नत के द्वार

जब तुमने मेरे साये के लिए

हसीन बहुत ही वो लहमा था

सितारों की महफ़िल में

मैं अकेला चाँद का टुकड़ा था

खुशियों ने मुखड़ा ऐसा दमकाया 

देख के दर्पण भी शरमा आया

टूट ना पाए बस ये सपना

हर पल ऐसा ही सुन्दर हो मन अपना

हर पल ऐसा ही सुन्दर हो मन अपना



 

Thursday, May 2, 2013

अफसाना

दर्द भरी दास्ताँ भी

खुशियों का खजाना है

कुछ पल के आंसुओ के बाद

सिर्फ फसाना ही फ़साना है

ना गम का कोई ठिकाना है

ना आंसुओ का कोई पैमाना है

दर्द का तो बस

अफसाना ही अफसाना है 

आँचल की छावं

छुपा ले चंदा मुझको अपने आँचल की छावं में

बंध जाए ऐसे बंधन की पाश में

छिटके चाँदनी मिलन राग की आस में

मेघों का घूँघट

सितरों के पनघट की आड़ में

खो जाए तेरी मस्तानी चाल में

महकने लगे जीवन कलियाँ

अपने मिलन के ख्याल में

छुपा ले चंदा मुझको अपने आँचल की छावं में

 

Thursday, April 25, 2013

जीवन साख

व्यस्त हूँ उलझा हूँ

जिन्दगी के नये पन्नों में खोया हूँ

उलट रहा हूँ पलट रहा हूँ

जीवन अंकुर इन पृष्ठों में टटोल रहा हूँ

समेट रहा हूँ सच्चे भावार्थ को

काव्य रचना बन संवर आये जीवन साख जो

बैठू कभी उदास जो

खोल पढ़ लू इस किताब को

खोल पढ़ लू इस किताब को

 

Thursday, April 18, 2013

सता के रखवाले

लुट लिया देश सता के रखवालों ने

बेच दिया जमीर सता के इन दलालों ने

रिश्वतखोरी के अंधेपन में

डुबो दी नैया इन चोरों के सरदारों ने

फूट गयी किस्मत देश की

इन पापी कर्णधारों की कारगुजारियो से

सरेआम नीलामी करवा दी

आबरू देश की

आतंकियों के हाथों से

बन कठपुतली दुश्मन देश की

थोप दिया जंगल का कानून

शैतानों की इन सरदारों ने

शैतानों की इन सरदारों ने

Wednesday, April 10, 2013

पुत्री

मेरी जिन्दगी के किताब की

तुम वो कविता हो

बार बार पढ़ने को

दिल जिसे चाहता है

तेरे शब्दों की मिठास में

घुल जाने को जीवन चाहता है

प्रेरणा हो तुम इस जीवन की

रेखांकित की जिसने

पिता पुत्री के प्यार की भाषा

बन इस घर मंदिर की आशा

धन्य हो गया जीवन मेरा

पा तेरी जैसी गुणवती छाया 

नजरे

नजरे इनायत हो अगर कुछ इस तरह

तुम महताब बन जाओ

मैं आफताब बन जाऊ

चाँदनी में मेरी

दीदार तेरा

गुलाब सा महका महका  हो

शरमो हया में लिपटी कोई अप्सरा

जैसे घूँघट में ओर लाजबाब हो

नजरे इनायत अगर कुछ इस तरह हो 

Sunday, April 7, 2013

रागिनी का अग्निपथ

जिस्म तपे रूह जले

अग्निपथ चल ही जीवन निखरे

रागिनी

विजय पथ कर रहा तेरा आह्वान

कर बस में उछ्रंख्ल मन

समेट आंसुओ का सैलाब

इस रण भूमि का

जीत से कर आगाज

नंगे कदम अंगारों पे चल ही

देना होता है जिन्दगी का इम्तिहान

कर इतना हौसला बुलंद तू

कांटे भी बन जाए फूलों की राह

तपेगी तभी कनक बनेगी

जान पायेगी तभी कामयाबी का स्वाद

रागिनी

अभियान है ये खुद पे इतराने का

हर संजोये खाब्ब सच कर जाने का

कर जीत से नये जीवन का आगाज

अभिमान हो सबको तुम पे

फक्र से करे सभी तेरा सन्मान



 

Saturday, April 6, 2013

नींद

नींद आँखों से कोसों दूर थी

पर तेरी बाहों के आलिंगन में

अपनी दुनिया टटोल रही थी

मिट जाए इस दरमियाँ सारे फ़ासले

प्यार भरे वो सपने संजो रही थी

खुली आँखों से

मन ही मन तस्वीर तेरी बुन रही थी

ताकि तस्वीर तेरी ही दीखे इन आँखों में

खाब्ब हसीन वो बुन रही थी

ओर नींद आँखों से कोसों दूर थी

दोस्ती की बहार

बातों के जज्बातों में जब बात चली

दो अजनबियों बीच दोस्ती की मिठास बड़ी

एक ही सफ़र के दोनों हमसफ़र

मिले जब अनजाने में

दोस्ती की चाह ओर बड़ी

उम्र की दहलीज ने

डाल रखी रिश्तों की बेड़ियाँ थी

पर सीमित दायरे की परिधि से भी

महक रही दोस्ती की मिठास थी

छोटे छोटे जज्बातों ने

रंग दी दोस्ती की हतेलियाँ थी

जो रच बस दिलों में

खिला रही थी दोस्ती की बहार नयी 

Wednesday, March 27, 2013

रूप लावण्य

अधरों पे फिर वो ही गीत सजा रखना

शबनमी अधखुली पलकों से

मदहोशी का आलम छलका देना

जब हम आये तो

बाहों में भर सुला देना

भूल जाए कायनात सारी

आगोश में तेरी

प्यार की वो मधुर राग गुनगुना देना

ढल ना पाए ये पहर कभी

अपने रूप लावण्य बाँध इसे लेना

बाँध इसे लेना

खाब्ब कुछ इस तरह तुम सजा देना

अधरों पे फिर वो ही गीत सजा रखना

लगाव

रंगों से हुआ ऐसा लगाव

रंगों की चाहत ने दुनिया ही बदल डाली

रंगरेज हो अनुभूति सारी

रंगीन बना डाली तस्वीर पुरानी

रंगीन हो गयी उजली उजली हर शाम सुहानी

रंगों के रंग रंग गयी जैसे

कोई साज पुरानी

रंगों की रंगीनी में खो

रंगीन मिजाज हो गयी चक्षु बेचारी

रंग ही रंग दिखे अब हर तरफ

छिटक रही जैसे रंगों से चाँदनी

रंगों के इस रंग

रंगीन हो गयी तस्वीर पुरानी 

Sunday, March 24, 2013

प्रीत

गीत ऐसा मैं गुनगुनाऊ

तेरी साजो की तरन्नुम पे जिन्दगी लुटाऊ

तू गजल मेरी

मैं ताल बन गीत तेरे गुनगुनाऊ

गीत ऐसा मैं गुनगुनाऊ

प्रेम सुधा रंग बरसे

राग ऐसी छेड़ जाऊ

गीत ऐसा मैं गुनगुनाऊ

प्रीत तू मेरी

मीत तेरा मैं बन गीत तेरे गुनगुनाऊ

गीत ऐसा मैं गुनगुनाऊ

इस कशिश की चाँदनी

मधुर संगीत बन गीत तेरे मैं गुनगुनाऊ

गीत ऐसा मैं गुनगुनाऊ

तेरी साजो की तरन्नुम पे जिन्दगी लुटाऊ

गीत ऐसा मैं गुनगुनाऊ


 

मैं

मैं तो वो गागर हु

जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु

मीठे बोलों की एक एक बूंदों से

प्रेम सागर बहाता जाता हु

हर सुधा कंठ को

प्रेम अमृत रसपान कराते जाता हु

मैं तो वो गागर हु

जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु

Friday, March 22, 2013

नया जन्म

लूट लिया उन प्यार के बोलों ने

खोल दिया अंतर्मन के द्वारों को

कह उठी दिल की आवाज़ भी

चल जन्म फिर से लेते है

एक दूजे के होके जिते मरते है

गुजर जायेगी जिन्दगानी

नहीं तो ऐसे ही गुमनामी में कही

छोड़ इसलिए कसमे वादों को

चल वरण करे एक दूजे को

जन्म नया फिर से ले

तोड़ हर बंधन की माया को

तोड़ हर बंधन की माया को
 

Monday, March 18, 2013

समाधि

जितनी जुड़ने की कोशिश की

उतना ही टूटता गया

जाने कौन भँवर में फंस गया

वेग जमाने की लहरों का प्रचंड ऐसा

थपेड़े भी लगे थप्पड़ समान

कोलाहल में जैसे

गुम हो गयी चीत्कार कहीं

अनसुनी हो गयी गूंज कहीं

नजर ना आया जमाने को

आँखों का सागर कभी

जल समाधि ले ली चेतना ने

होके घायल तभी

 

दर्पण

दर्पण  में अपना अक्स निहारु

फितरत कभी बदली नहीं

दर्पण  झूट कहता नहीं

प्रतिबिम्ब सत्य निहारु

रंग भरे जो फितरत में

तस्वीर वो निहारु

दिखे पर वो ही श्वेत श्याम रंग

कैसे अपना अक्स बदल डालू

बेदर्द रंगों के दर्द

भरने ना दे जब अक्स में अपने रंग

क्यों फिर मैं दर्पण निहारु

गुस्ताखी ये हो ना जाए कही

क्यों ना इसलिए दर्पण ही बदल डालू 

Monday, March 11, 2013

जंग का पिटारा

खुले जो जंग का पिटारा

कर्कश भरे कर्णभेदी

शब्दों के बाण चले

इस मुहँ जुबानी जंग से 

परवाह नहीं

कितने रिश्ते आहत हो जाए

मर्यादा जुबाँ भी ऐसी लाँघ जाए 

झड़ी बेशर्मी की लगा जाए

कटाक्ष दिलों को ऐसे भेद जाए

लहू जैसे पानी पानी हो जाए 

बच ना पाए संधि की कोई गुंजाईस

कई रिश्ते नाते इस दरमियाँ शहीद हो जाए

बदकिस्मती से अपने ही अपनों से हार जाए 

Friday, March 8, 2013

सृष्टि

खिल रही नये पौध में कपोल प्यारी

मिल रही रूह जीवन से

अंकुरित हो रही नयी फसल तरारी

जल बन अमृत लहू

सींच रही कण कण में जीवन सुधा निराली

भर रही नये रंग प्रकृति

आत्मचित कर रही कायनात की सृष्टि  

Tuesday, March 5, 2013

शिकायत

माँ

तुने बेटे बेटियों के लिए ममता क्यों है बांटी

यह शिकायत नहीं एक सवाल है

होते हुए भी तू नारी

चाहत बेटों की ही क्यों है

ऐसी भी क्या खता

बेटियाँ लगती तुमको भारी है

कन्या भ्रूण हत्या खिलाफ

आवाज़ बुलंद क्यों नहीं तुम्हारी है

ओ माँ तुम्हे मैं ऐ याद दिला दूँ

बेटे बेटियों में फर्क बतला दूँ

बेटी बेटी रहती मृत्यु तक

पुत्र पुत्र रहता शादी तक

भावना फिर क्यों तेरी ऐसी है

बस पुत्र कामना ही तेरी भक्ति है

सुन हमारी भी किलकारी की नाद

क्यों गम हो जाती तुम्हारी साँसों की झंकार

अब ओर करो ना हम पे अत्याचार

रख हमें भी अपनी करुणा की छावं

दे दो हमें भी जीने का अधिकार

दे दो हमें भी जीने का अधिकार

Thursday, February 28, 2013

अनुभुति

कोरा कागज़ नहीं ये मेरी जान

मेरे दिल का दर्पण है ये मेरी आन

प्रतिबिंब नजर आएगा

रखोगी इसे जब ह्रदय के पास

बंद कर आँखे

फेरोगी जब इसपे हाथ

सुनाई देगा दिल ए मेरा हाल

कोरे ख़त की ये अदृश्य अनुभुति

सचे प्यार का है आगाज

स्पष्ट होने लगेगा हर छिपा पैगाम

फ्रस्फुटित होगा जब ढाई आखर का ज्ञान

तुम ही हो मेरे दिल की हमराज

कोई ओर जान ना पाये ये राज

भेज दिया इसलिए

कोरे कागज़ पे उभार दिल ए हाल

सुननी हो जो अपनी धड़कने

मेरी धडकनों के नाल

रखना सदा इसे अपने दिल के पास

कोरा कागज़ नहीं ये मेरी जान

मेरे दिल का दर्पण है ये मेरी आन

कोरा कागज़ नहीं ये मेरी जान

Wednesday, February 27, 2013

गणित

अंकों का है सारा गणित

संयम का है ये संगीत

है इसके खेल निराले

कहीं जुड़े कहीं घटे

बने नये नये अंकों के गीत

पहेली बन सुलझादे

गर्भ गृह में छिपे

गुणनफल और वर्गफल के तीर

अद्भुत बड़ी इसकी सरंचना

शून्य बिना नहीं इसकी महिमा

खेल खेल में ही बन जाये

इसके रूप रंग की रेखा

निखर आये संगीत की धुन

मिल जाये जब हल से पुस्तिका

मिल जाये जब हल से पुस्तिका




 

Monday, February 25, 2013

भाषा

वो नयनों की भाषा

ना जाने क्या कह गयी

ख़ामोशी से

इस दिल में

घर बना गयी

वो चंचल कामिनी सी काया

ना जाने क्या जादू चला गयी

रूह बन

इस जिस्म में समा गयी

वो चहकती नादानियाँ

ना जाने क्या गुल खिला गयी

धड़कन बन

इन साँसों में समा गयी

वो नयनों की भाषा

ना जाने क्या कह गयी
 

Friday, February 22, 2013

तेरी याद

सुबह की खिलखिलाती गुनगुनी धुप

याद तेरी ले आयी

फिजाओं में  बिखरी तेरी खुशबू

साँसों में समा आयी

ओस में लिपटा गुलाब

लबों की मुस्कान बन आयी

सुबह की खिलखिलाती गुनगुनी धुप

याद तेरी ले आयी

 

चाहतों के रंग

रंग चाहतों के बदल गए

मायने जिन्दगी के बदल गए

दिलों में कुछ लबों पे कुछ

रंग चाहतों के बदल गए

वो बेकरारी नहीं जुस्तजू नहीं

रंग जो चाहतों की शोखियों में हुआ करते थे

रंग चाहतों के बदल गए

मायने जिन्दगी के बदल गए

रूह नहीं जिन रंगों में

सज रही वो महफ़िल आज भी

झलकती पर उनमे सिर्फ

बदले जमाने के रंगों की चाल ही

बदले जमाने के रंगों की चाल ही

  

Friday, February 15, 2013

शौहरत

गुम थी गुमनामी में शौहरत की बात

मजबूर ऐसे थे हालात

मुखर हो ना पाती थी दिल की बात

व्यंग बाण हँसते हुए सहते थे

जुबाँ अपनी पर बंद रखा करते थे

पर था अपने पे दृढ़ विश्वास

मेहनत के बल बदल दूँगा हालत

शौहरत भी इतराएगी

देख किस्मत के बदले मिजाज

लेकिन आज गुम थी गुमनामी में शौहरत की बात

गुम थी गुमनामी में शौहरत की बात







 

Thursday, February 14, 2013

कौन सा रंग

रंग ना जाने कौन सा चढ़ा

मेहंदी का रंग भी सुर्ख लाल हो गया

आँखों में छिपी शैतानिया का रंग

शरमो हया सा गाल गुलाबी हो गया

महफ़िल सजी जिसके रंगों से

उस रंग का दिल गुलाम हो गया

रंग ना जाने कौन सा चढ़ा

हर नजारा रंगीन हो गया

फिजाओं में भी घुल गया रंग

कल्पनाओ का संसार रंगीन हो गया

मस्ती उमंग के रंगों से

साज जिन्दगी का रंगीन हो गया

रंग ना जाने कौन सा चढ़ा

मेहंदी का रंग भी सुर्ख लाल हो गया

 

Tuesday, February 12, 2013

मीठी मीठी

जिन्दगी हर पल मीठी होती है

पर कभी कभी बेमजा ये बेकार होती है

कुछ खट्ठी खट्टी कुछ मीठी मीठी होती है

हर पल ये एक नयी पहेली होती है

मिल बैठ जो ग़मों को बाँट ले

तो जिन्दगी फिर हर पल मीठी हो जाती है

दर्पण है ये जिंदगानी का

जैसे निहारों

अक्स वैसा दिखलाती है

सफ़र के हर पड़ाव में

सबक नया सिखलाती है

मिल बैठ जो ग़मों को बाँट ले

तो जिन्दगी फिर मीठी मीठी हो जाती है











 

बजट

किया मंत्री महोदय ने बजट ऐसा पेश

जायका सारा बिगाड़ दिया

महँगाई से त्रस्त अवाम को

तोहफा नायाब दे दिया

बड़ा राशन की कीमतें

निवाला भी मुँह से छीन लिया

देश का भविष्य जब इन जैसे कर्णधारों के हाथ

फ़िक्र कैसे हो उन्हें इस अवाम की

इसीलिए किया बजट में ऐसा प्रावधान

खुद की जनता को भूखे रख

सरकार करेगी अनाज का निर्यात

ताकि लहलहा सके

इन कर्णधारों के खजाने की पैदावार

कहा देश हित में है यह बलिदान

वरना देश हो जायेगा कंगाल

एक वक़्त के अनाज से भी

महरूम रह जायेगी अवाम

अगर नहीं हुआ अनाज का निर्यात





 

Tuesday, January 29, 2013

कारवाँ

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

गुब्बार धूल का उड़ाता चला गया

किसीको रंजो गम के सैलाब में डुबाता चला गया

किसीको खुशियों के रंग डुबाता चला गया

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

निशाँ क़दमों के पीछे छोड़ता चला गया

इतिहास बन गुजरे कल की दास्ताँ सुनाता चला गया

एक नयी दिशा नयी मंजिल की ओर अग्रसर होता चला गया

उम्मीद की एक नयी किरण उदयमान करता चला गया

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

गुब्बार धूल का उड़ाता चला गया

कारवाँ आहिस्ता आहिस्ता गुजरता चला गया

 

झुकना

मंजिल मिलती है जब

आसमां झुक जाता है तब

शौहरत मिलती है जब

झुक जाती है दुनिया तब  

Friday, January 25, 2013

माँ

माँ शब्द है ऐसा

सारी दुनिया जैसे घर उसका

कायनात और खुदा भी

नतमस्तक इसके आगे

वर्णन की ना जा सके जो शब्दों में

माँ होती वैसी है

अंकुर नया फ़्रस्फ़ुटीत जब होता है

प्राणी जन्म जब लेता है

पहला शब्द माँ ही उच्चारण करता है

माँ जननी इस धरा की

कल्पना अधूरी सृष्टि की इस बिना

है इसके ही चरणों में जन्नत की छाया

इसमें ही दिखे ईश्वर का साया

माँ शब्द में ही ममता की माया

माँ शब्द में ही छुपी माँ नाम की गाथा 

ढोंगी

ढोंगी मानव हो गया

पाखंड की चादर ओढ़ सो गया

मुख में रखे खुदा का नाम

पर हाथों में सूरा के जाम

उतर मंदिर की जिन्ने

चूमे जिन्ने कोठे की हर शाम

भुला चंदन की खुशबू

भटके गजरे की गली गली

हटा तिलक छाप

सुरमे के रंग बदरंग हो गया

लगे उसे मंदिर मोक्ष का द्वार

पर कोठा लगे जन्नत का द्वार

पहन यह मुखोटा पाखंड का

ढोंगी मानव हो गया









 

Thursday, January 17, 2013

पिता की याद

नूर आपके आज फिर उदास है

आप नहीं जो पास है

आँखों में आँसू

दिलों में जज्बात है

आपकी प्रेरणा

हमारे लिये ईश्वर  वरदान है

आपके अंश कहलाने का गर्व

हमारे अभिमान का ताज है

यादों के झरोखों में ही

अब अपना साथ है

आप नहीं जो पास है

नूर आपके आज फिर उदास है  

 

Wednesday, January 16, 2013

रास

चुप रह वो कहते थे

पैगाम हमारा रास ना आया

आना था जिनको बहार बनके

हवाओं का वो वयार ना आया

जिक्र ना था हाले दिल ख़त में

संदेशा भी आधा अधुरा सा था

कर दिया नयनों ने सब वयां

ढाई आखर की मुराद जिन्हें

रास उन्हें कैसे फिर कोरा पैगाम था

अहसास हमें भी हो चला था

जाने कब बातों ही बातों

इस दिल को

उस अजनबी से प्यार हो गया था



 

Thursday, January 10, 2013

अस्मत

डर लगता है अपने साये से भी अब

बदल गयी वक़्त की चाल भी अब

महफूज थी जो कल तलक

भयभीत है वो अस्मत आजकल

हैवानियत की नयी भाषा गढ़ी जिन्होंने

कब निकल आये उन दरिंदो के पर

सोच के इस डर को

अब अपने साये से भी लगने लगा है डर

कुदरत भी उनके डर से थर्रा रही

शरमों हया से लज्जा रही

मूकदर्शक बनी

आँखों ही आँखों आँसू बहा रही

विवश है किस्मत बेचारी

अस्मत की रक्षा खातिर

डर रही आज अपने साये भी नारी





 

फरमाइश

मौसम ने की है फरमाइश ख़ास

जश्न में डूबी हो शाम

सितारों की महफ़िल में

चाँद के भी हो दीदार

बरसे रंग हजार

छलके नयनों से

जाम के जाम

मदहोश हो हर सितारा

देख चाँद की खुबसूरत चाल

नजर लगे ना किसीकी

रंगीन हो

ऐसी ही हर शाम

मौसम ने की है ये फरमाइश ख़ास

जश्न में डूबी हो शाम



 

Monday, January 7, 2013

बेकसूर निगाहें

बेकसूर थी निगाहें

खुली हुई थी हिजाब की बाहें

बेपर्दा थे हुस्न के दीदार

नकाब रुख से जो हटा

गुनाह फिर इस दिल से हो गया

देख प्यार की कशिश

संगेमरमर का ताज

प्यार इस दिल को भी

उस पर्दा नशी से हो गया 

ना जाने कब

आँखों ही आँखों में इकरार हो गया

 

Wednesday, January 2, 2013

कब तलक

कब तलक

अपनी परछाइयों से भागता फिरू मैं

खुद में खुदा तलाशता फिरू मैं

चेतना शून्य के भँवर में

भटकता फिरू मैं

असहनीय पीड़ा कष्ट

नासूर बन चुभ रहा जो दिल में

कब तलक उससे

मर मर जिन्दा रहू मैं

कब तलक

उन जड़ों में अपनी जड़े तलाशता रहू मैं

जिनका कोई अस्तित्व नहीं

कब तलक

उनमे जीवन तलाशता फिरू मैं