Tuesday, December 17, 2013

मंगल बेला

सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी

गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी

जैसे कोई कंचन काया थी

परिणय सूत्र कि जैसे मंगल बेला आयी थी

गूँज रही कहीं पास ही जैसे शहनाई थी

कितना हसीन पाक था ये मंजर

कुदरत भी जैसे साक्षी बन आयी थी

बारिश कि शबनमी बूंदे

पिरों रही जैसे मोतियों कि माला थी

सुबह कि लालिमा में तेरी परछाई थी

गुलाब कि पंखुड़ियों में लिपटी

जैसे कोई कंचन काया थी

Wednesday, December 4, 2013

आस पास

कभी कभी यह अहसास होता है

तुम हो

यहीं कहीं मेरे आस पास हो

वो पतों कि सनसनाहट

पैरों कि आहट

हवाओं कि सरसराहट

मधुर बोलों कि गुनगुनाहट

चाँदनी कि झनझनाहट

झांझर कि हिनहिनाहट

मृदंग कि थपथड़ाहट

नयनों कि छटपटाहट

दीवानगी का ये आलम संजोती है

परछाईयों में भी तुम्हें टटोलती है

ख्यालों में भी अक्स तेरा ही बुनती है

कभी कभी दिल को अहसास करा जाती है

तुम हो

यहीं कहीं मेरे आस पास हो



Tuesday, December 3, 2013

साँसों कि साज

हम उन राहों में जिंदगी छोड़ आये

जहाँ कभी दिल कि शमा रोशन हुआ करती थी

चमन कि आगोश में शाम ढला करती थी

साक्षी थी वो हसीन चाँदनी रात

करवट ले ली थी किस्मत ने

जब कुदरत के हाथ

सुन के भी दिल कि रुंदन पुकार

धड़कने लौटा ना पायी

रूठी साँसों कि साज