ए अजनबी न जाने क्यों
ए निगाहें हर पल तुम्हें तलाशती है
क्या रूप है जिसको ए निहारती है
वजूद इसका ना जाने कैसे पनपा
नाजुक से इस दिल के कोने में
मुलाकात अब अक्सर होती है
बंद पलकों के झरोकों में
सपनों के इस अनछुए संसार की
जाने कैसी कशिश का
कौन सा पैगाम है ए
अरमानों कि दहलीज़ पर खड़ी निगाहें
करने आलिंगन तुम्हें ए अजनबी
तलाशती दिल कि राहें है
तलाशती दिल कि राहें है
ए निगाहें हर पल तुम्हें तलाशती है
क्या रूप है जिसको ए निहारती है
वजूद इसका ना जाने कैसे पनपा
नाजुक से इस दिल के कोने में
मुलाकात अब अक्सर होती है
बंद पलकों के झरोकों में
सपनों के इस अनछुए संसार की
जाने कैसी कशिश का
कौन सा पैगाम है ए
अरमानों कि दहलीज़ पर खड़ी निगाहें
करने आलिंगन तुम्हें ए अजनबी
तलाशती दिल कि राहें है
तलाशती दिल कि राहें है
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार २६/११/१३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर कि जायेगी आपका वहाँ हार्दिक स्वागत है।मेरे ब्लॉग पर भी आयें ---http://hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in/पीहर से बढ़कर है मेरी ससुराल सखी(गीत
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबंद पलकों के झरोकों में
ReplyDeleteसपनों के इस अनछुए संसार की
जाने कैसी कशिश का
कौन सा पैगाम है ए
अरमानों कि दहलीज़ पर खड़ी निगाहें
करने आलिंगन तुम्हें ए अजनबी
तलाशती दिल कि राहें है
बहुत खुबसूरत !
नवम्बर 18 से नागपुर प्रवास में था , अत: ब्लॉग पर पहुँच नहीं पाया ! कोशिश करूँगा अब अधिक से अधिक ब्लॉग पर पहुंचूं और काव्य-सुधा का पान करूँ |
नई पोस्ट तुम
शुक्रिया
Deleteकल 27/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
शुक्रिया
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