मैं ख्यालों में सपने बुनता गया
एक अनजानी तस्वीर में
रंग भरता गया
पर खाब्ब हकीक़त नहीं बनते
यह भूलता गया
पहेली थी यह गहरी शायद
इन्द्रधनुषी इसकी छटा में
खोता चला गया
अच्छी लगती वो खाब्बों की ताबीर अगर
चेतना उसमे जगा गया होता
एक अनजानी तस्वीर में
रंग भरता गया
पर खाब्ब हकीक़त नहीं बनते
यह भूलता गया
पहेली थी यह गहरी शायद
इन्द्रधनुषी इसकी छटा में
खोता चला गया
अच्छी लगती वो खाब्बों की ताबीर अगर
चेतना उसमे जगा गया होता
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