Thursday, September 26, 2013

स्वाभिमान

हवायें रुख बदल सकती है 

गति पर मेरी बदल सकती नहीं 

बाँध ले मुझे अपने पाश में 

ताकत इनमे इतनी नहीं 

स्वछन्द विचरण की अनुभूति 

चारदीवारी में मिल सकती नहीं 

जकड ले क़दमों को मेरे 

बेड़ियाँ वो अब तलक बनी नहीं 

शर्तों पे अपनी मैं जीता हूँ 

दासता मुझे गंवारा नहीं 

अभिमान है अपने स्वाभिमान पे 

राह की कोई बाधा तभी बड़ी नहीं 

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