क्यों मिले तुम उन राहों में
मंजिल जिनकी कोई ना थी
सिर्फ सपनों की दुनिया थी
और बेकरार जिंदगानी थी
मिल ना सके जो प्यार कभी
उस कशिश में वो आरजू कहा थी
जुदा थी जिन्दगी की राहे मगर
मिलन की आस फिर भी पास थी
सुलग रही थी जो चिंगारी सीने में
आंसुओ के सैलाब में वो भी गुम थी
क्यों मिले तुम उन राहों में
मंजिल जिनकी कोई ना थी
मंजिल जिनकी कोई ना थी
मंजिल जिनकी कोई ना थी
सिर्फ सपनों की दुनिया थी
और बेकरार जिंदगानी थी
मिल ना सके जो प्यार कभी
उस कशिश में वो आरजू कहा थी
जुदा थी जिन्दगी की राहे मगर
मिलन की आस फिर भी पास थी
सुलग रही थी जो चिंगारी सीने में
आंसुओ के सैलाब में वो भी गुम थी
क्यों मिले तुम उन राहों में
मंजिल जिनकी कोई ना थी
मंजिल जिनकी कोई ना थी
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