नम आँखों से तेरी विदाई देखते रहे
ख़ामोशी से तक़दीर की रुसवाई सहते रहे
हौसला इतना जुटा ना पाए
चाहत की अपनी खातिर अपनों से लड़ पाए
डोली आनी थी जो मेरे अँगना
विदा हो रही थी किसी ओर के अँगना
कैसे रचेगी मेहंदी उसके हाथों सजना
कैसे अब मैं जी पाऊंगा उसके बिना
सपनों में भी जिसे भुला ना पाऊंगा
सिर्फ उसकी यादों के सहारे कैसे मैं जिन्दा रह पाऊंगा
ख़त्म हो गयी अब सारी दुनिया
अपने ही हाथों उजाड़ दी मैंने अपनी दुनिया
ख़ामोशी से तक़दीर की रुसवाई सहते रहे
हौसला इतना जुटा ना पाए
चाहत की अपनी खातिर अपनों से लड़ पाए
डोली आनी थी जो मेरे अँगना
विदा हो रही थी किसी ओर के अँगना
कैसे रचेगी मेहंदी उसके हाथों सजना
कैसे अब मैं जी पाऊंगा उसके बिना
सपनों में भी जिसे भुला ना पाऊंगा
सिर्फ उसकी यादों के सहारे कैसे मैं जिन्दा रह पाऊंगा
ख़त्म हो गयी अब सारी दुनिया
अपने ही हाथों उजाड़ दी मैंने अपनी दुनिया
No comments:
Post a Comment