जिन्दगी ना जाने क्यूँ इतना सताती है
हर वक़्त खौफ़ के साये में सिमटी रहती है
दर्द जमाने का रास इसे आता नहीं
डर लगता है इसे किससे समझ आता नहीं
भागती फिरती अपने आप से
मिल गयी कोई रूह जैसे राह में
निहारती जब अपने को दर्पण में
देख अक्स सिरहन सी यह जाती है
सूनी आँखों से ना जाने क्या तलाशती है
जिन्दगी ना जाने क्यूँ इतना सताती है
हर वक़्त खौफ़ के साये में सिमटी रहती है
दर्द जमाने का रास इसे आता नहीं
डर लगता है इसे किससे समझ आता नहीं
भागती फिरती अपने आप से
मिल गयी कोई रूह जैसे राह में
निहारती जब अपने को दर्पण में
देख अक्स सिरहन सी यह जाती है
सूनी आँखों से ना जाने क्या तलाशती है
जिन्दगी ना जाने क्यूँ इतना सताती है
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeletelatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
धन्यवाद् महोदय
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