किन लफ्जों में उस खूबसूरती का बखान करूँ
तारों भरी रात थी
सपनों की बारात थी
उर्वशी सी कोई अप्सरा
आसमां से झाँक रही थी
कर दीदार चाँद के
मन ही मन मंद मंद मुस्का रही थी
नजरे टकटकी लागये
इस पल को निहार रहे थे
समां बंधा था ऐसा
कब ढल गयी वो सुहानी रात
अहसास इसका आँखों के आस पास भी ना थी
तारों भरी रात थी
सपनों की बारात थी
उर्वशी सी कोई अप्सरा
आसमां से झाँक रही थी
कर दीदार चाँद के
मन ही मन मंद मंद मुस्का रही थी
नजरे टकटकी लागये
इस पल को निहार रहे थे
समां बंधा था ऐसा
कब ढल गयी वो सुहानी रात
अहसास इसका आँखों के आस पास भी ना थी
No comments:
Post a Comment