खबर तेरी इस जहाँ को कहा थी
गुलदस्ते में छिपी बैठी
ज़माने की बेरुखी निहार रही थी
पल ये भी थोड़े थे
हकीक़त से मगर रूबरू थे
कल तलक जिस फूल के चर्चे आम थे
टूटते ही डाली से , सब वीरान थे
फिक्र कहा बेदर्द ज़माने को थी
सचमुच पल दो पल के बाद
जिन्दगी गुमनाम थी
गुलदस्ते में छिपी बैठी
ज़माने की बेरुखी निहार रही थी
पल ये भी थोड़े थे
हकीक़त से मगर रूबरू थे
कल तलक जिस फूल के चर्चे आम थे
टूटते ही डाली से , सब वीरान थे
फिक्र कहा बेदर्द ज़माने को थी
सचमुच पल दो पल के बाद
जिन्दगी गुमनाम थी
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