Saturday, June 1, 2013

दीदार

देखने चाँद के हुस्नों शब्बाब

गिरवी रख दी नींद हमने आज

मिन्नतें बादलों से की बार बार

रुख से नकाब हटा

पर्दा नशीं को बेपर्दा करदे एक बार

बेकरार रात की अधखुली पलकों ने भी

सपनों से गुजारिश इतनी सी की है आज

छोड़ सितारों की महफ़िल

जमीं पर आज उतर आ जाए चाँद

दीदार  हुस्न के ऐसे मिल जाय 

एक पल को भी पलक झपक ना पाय

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