क्यों तुम सिर्फ एक अहसास हो
क्यों नहीं मेरे पास हो
तलाशती है नजरे उस पल को
जन्म लिया इस अहसास ने जिस पल को
सोचता हु जब बंद कर आँखों को
तस्वीर तब बुनता हु इन अहसासों की
रंग भर जाते है इनमे दिल के अरमानों से
जूनून बन गयी अब अहसास की यह छाया
मिलने को आतुर तुमसे
तलाश रही तेरा साया
फिर क्यों नहीं तुम मेरे पास हो
क्यों सिर्फ एक अहसास हो
क्यों सिर्फ एक अहसास हो
क्यों नहीं मेरे पास हो
तलाशती है नजरे उस पल को
जन्म लिया इस अहसास ने जिस पल को
सोचता हु जब बंद कर आँखों को
तस्वीर तब बुनता हु इन अहसासों की
रंग भर जाते है इनमे दिल के अरमानों से
जूनून बन गयी अब अहसास की यह छाया
मिलने को आतुर तुमसे
तलाश रही तेरा साया
फिर क्यों नहीं तुम मेरे पास हो
क्यों सिर्फ एक अहसास हो
क्यों सिर्फ एक अहसास हो
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (28-05-2013) के "मिथकों में जीवन" चर्चा मंच अंक-1258 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'