मैं तो वो गागर हु
जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु
मीठे बोलों की एक एक बूंदों से
प्रेम सागर बहाता जाता हु
हर सुधा कंठ को
प्रेम अमृत रसपान कराते जाता हु
मैं तो वो गागर हु
जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु
जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु
मीठे बोलों की एक एक बूंदों से
प्रेम सागर बहाता जाता हु
हर सुधा कंठ को
प्रेम अमृत रसपान कराते जाता हु
मैं तो वो गागर हु
जो प्रेम सुधा छलकाता जाता हु
सु-प्रेम सुधा की बूंद
ReplyDelete