दर्पण में अपना अक्स निहारु
फितरत कभी बदली नहीं
दर्पण झूट कहता नहीं
प्रतिबिम्ब सत्य निहारु
रंग भरे जो फितरत में
तस्वीर वो निहारु
दिखे पर वो ही श्वेत श्याम रंग
कैसे अपना अक्स बदल डालू
बेदर्द रंगों के दर्द
भरने ना दे जब अक्स में अपने रंग
क्यों फिर मैं दर्पण निहारु
गुस्ताखी ये हो ना जाए कही
क्यों ना इसलिए दर्पण ही बदल डालू
फितरत कभी बदली नहीं
दर्पण झूट कहता नहीं
प्रतिबिम्ब सत्य निहारु
रंग भरे जो फितरत में
तस्वीर वो निहारु
दिखे पर वो ही श्वेत श्याम रंग
कैसे अपना अक्स बदल डालू
बेदर्द रंगों के दर्द
भरने ना दे जब अक्स में अपने रंग
क्यों फिर मैं दर्पण निहारु
गुस्ताखी ये हो ना जाए कही
क्यों ना इसलिए दर्पण ही बदल डालू
No comments:
Post a Comment