खुले जो जंग का पिटारा
कर्कश भरे कर्णभेदी
शब्दों के बाण चले
इस मुहँ जुबानी जंग से
परवाह नहीं
कितने रिश्ते आहत हो जाए
मर्यादा जुबाँ भी ऐसी लाँघ जाए
झड़ी बेशर्मी की लगा जाए
कटाक्ष दिलों को ऐसे भेद जाए
लहू जैसे पानी पानी हो जाए
बच ना पाए संधि की कोई गुंजाईस
कई रिश्ते नाते इस दरमियाँ शहीद हो जाए
बदकिस्मती से अपने ही अपनों से हार जाए
कर्कश भरे कर्णभेदी
शब्दों के बाण चले
इस मुहँ जुबानी जंग से
परवाह नहीं
कितने रिश्ते आहत हो जाए
मर्यादा जुबाँ भी ऐसी लाँघ जाए
झड़ी बेशर्मी की लगा जाए
कटाक्ष दिलों को ऐसे भेद जाए
लहू जैसे पानी पानी हो जाए
बच ना पाए संधि की कोई गुंजाईस
कई रिश्ते नाते इस दरमियाँ शहीद हो जाए
बदकिस्मती से अपने ही अपनों से हार जाए
बढिया मनोज जी
ReplyDeleteमहोदय
Deleteहौसला अफजाई के लिए धन्यवाद
सादर
मनोज क्याल