Monday, February 25, 2013

भाषा

वो नयनों की भाषा

ना जाने क्या कह गयी

ख़ामोशी से

इस दिल में

घर बना गयी

वो चंचल कामिनी सी काया

ना जाने क्या जादू चला गयी

रूह बन

इस जिस्म में समा गयी

वो चहकती नादानियाँ

ना जाने क्या गुल खिला गयी

धड़कन बन

इन साँसों में समा गयी

वो नयनों की भाषा

ना जाने क्या कह गयी
 

1 comment:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार26/2/13 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

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