बेकसूर थी निगाहें
खुली हुई थी हिजाब की बाहें
बेपर्दा थे हुस्न के दीदार
नकाब रुख से जो हटा
गुनाह फिर इस दिल से हो गया
देख प्यार की कशिश
संगेमरमर का ताज
प्यार इस दिल को भी
उस पर्दा नशी से हो गया
ना जाने कब
आँखों ही आँखों में इकरार हो गया
खुली हुई थी हिजाब की बाहें
बेपर्दा थे हुस्न के दीदार
नकाब रुख से जो हटा
गुनाह फिर इस दिल से हो गया
देख प्यार की कशिश
संगेमरमर का ताज
प्यार इस दिल को भी
उस पर्दा नशी से हो गया
ना जाने कब
आँखों ही आँखों में इकरार हो गया
behatareen prastuti,बेकसूर थी निगाहें
ReplyDeleteखुली हुई थी हिजाब की बाहें
बेपर्दा थे हुस्न के दीदार
नकाब रुख से जो हटा
गुनाह फिर इस दिल से हो गया *******new post betiyan aur kafan
Thanks
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